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ढोल को आवाज बन्द हुई, घोषकों की आवाज शुरू हुई, "सुनो, बलिपुर के महाजनो, सुनो! आज शाम को चौथे पहर में बड़े हेगड़े मारसिंगय्याजी के आँगन में बलिपुर के पंचों की सभा होगी। दण्डनीय अपराध करनेवाले एक व्यक्ति के अपराधों पर खुलेआम विचार होगा। हर कोई आ सकता है। सुनो, सनो, बलिपुरवालो"
लोगों में फिर टिप्पणियों का दौर चला। क्या, कहाँ, वह व्यक्ति कौन है ? उसने क्या किया। अचानक ही पंचों की सभा बैठेगी तो कोई खास बात है। सभा बैठेगी हेग्गड़े के अहाते में, वहाँ सभा क्यों हो? गाँव में इस तरह के कामों के लिए आखिर स्थान किसलिए हैं?
हेगाड़े का विशाल अहाता लोगों से खचाखच भर गया। बरामदे को अपर्याप्त समझकर उसके दक्षिण की ओर बरामदे की ऊँचाई के बराबर ऊँचा एक मंच बनाया गया और ऊपर शामियाना तानकर लगवाया। मंच पर सुन्दर दरी बिछा दी गयी जिस पर प्रमुख लोगों के बैठने की व्यवस्था की गयी।
पंच उत्तर की ओर मुंह करके बैठे। उनमें बड़ा हरिहरनायक बीच में बैठा, वह भारी-भरकम आदमी था और उसका विशाल चेहरा सफेद दाढ़ी-मूंछ से सजकर बहुत गम्भीर लगता था। शेष लोग उससे उम्र में कुछ कम थे परन्तु उनमें कोई पचास से कम उम्न का न था। बरामदे में दो खास आसन रखे गये थे, उनपर कोई बैठा न था। हेगड़े मारसिंगय्या और उनके परिवार के लोग बरामदे में एक तरफ बैठे थे। मंच की बगल में हथियारों से लैस कुछ सिपाही खड़े थे, उनमें से एक को मारसिंगय्या ने बुलाकर उसके कान में कुछ कहा।
"नियत समय आ गया है, अब पंच अपना काम आरम्भ कर सकते हैं." सरपंच हरिहरनायक ने कहा, "हेग्गड़ेजी, आपसे प्राप्त लिखित शिकायत के आधार पर यह पंचायत बैठी है। आपकी शिकायत में लिखित सभी बातों को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक सब गवाहों को इस पंचायत के सामने प्रस्तुत किया जाए।" ।
__ "चार-पाँच क्षण का अवकाश दें, मेरी विनती है, अभियुक्त और तीन मुख्य गवाहों का आना शेष है। उन्हें बुला साने के लिए आदमी गये हैं।" मारसिंगय्या ने कहा।
अहाते के पास पहरे से घिरी एक गाड़ी आ पहुँची। हाथ बँधे हुए अभियुक्त को उतारकर उसके लिए निश्चित स्थान पर ले जाकर खड़ा किया गया। उसके पीछे दो हथियारबन्द सैनिक खड़े हो गये।
__ उपस्थित लोगों की भीड़ में से एक आषाज उठी, "अरे, यह तो कल्याण के हीरे.. जवाहरात का व्यापारी है।"
पंचों में से एक ने जोर से कहा, "खामोश।" हेगड़ेजी के घर के अन्दर से सैनिक आने लगे। प्रत्येक सैनिक व्यवस्थित रीति
पट्टमहादेवो शान्तला :: 717