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पति के साथ इसका सरोकार है, यह बात हमें मालूम तक नहीं पड़ी।
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'ठीक हैं, अच्छा, यह बताओ कि तुम अपने सारे सुख-दुख उससे कहा करती थी ? हरिहरनायक ने पूछा।
"हाँ, मालिक। औरत को अपना दुखड़ा सुनाकर दिल का बोझ उतार लेने के लिए एक स्त्री की मित्रता बहुत आवश्यक हैं, नहीं तो अपने दुख का भार लिये लिये वह कब तक जिएगी।"
"ऐसी कोई बात याद हो तो कहो, कह सकोगी ?"
'यहाँ ? यहाँ क्यों, मालिक ? हर एक के जीवन में कोई-न-कोई घटना होती ही है। उसे कोई सबके सामने क्यों बताये ?"
"सत्य को प्रकाश में लाना हो तो हमें अपने दुख-दर्द को, मानापमान को प्रधानता नहीं देनी चाहिए, वह सत्य की दृष्टि से गौण है, मल्लि ।"
"फिर भी इस समय के विचारणीय विषय से जिसका सम्बन्ध नहीं, वह भी जानने का क्या प्रयोजन हैं, मालिक ?"
"इस विषय से सम्बन्ध है या नहीं, इस बात का निर्णय तुम्हीं ने कर लिया मल्लि ?"
"इसके क्या माने ? अगर हैं तो मुझे भी मालूम होना चाहिए कि क्या सम्बन्ध
'अच्छा जाने दो, तुम्हारी इच्छा नहीं तो हम जबरदस्ती नहीं पूछते। अच्छा, यह बताओ कि इस गाँव में आये तुम्हें कितने दिन हुए ?"
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" दो साल । "
"इन दो सालों में तुम्हारे जीवन में ऐसी कोई अनिरीक्षित घटना इस बलिपुर में घटी है कभी ?"
"घटी है, परन्तु... ।"
"परन्तु क्या, जो हुआ, सो कहो।"
"ऐसा अच्छा नहीं। कैसे कहूँ, मालिक ?"
"उसके बारे में तुमने दासब्बे को बताया है ?"
"हाँ।"
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अगर वह कहे तो चलेगा ?"
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'अगर वह कह सकती है तो मैं भी कह सकती हूँ। " " तो तुम कहो न ।"
"घृणा आती है। फिर भी... ।"
"घृणा किस बात की ? झूठी आन में पड़कर कहने में हिचकिचाओ मत। "
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'आन को कोई आँच नहीं लगती, मालिक। हम ग्वालिन हैं। गौमाता की सेवा
124 पड़महादेवी शान्तला