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"तुमने कहा न, उस धोबिन चेनी से कई बातें मालूम हुई, लेंक, तुमको कैसे मालूम हुआ कि उससे पूछना चाहिए। क्या हेगड़ेजी ने पूछने को कहा था?" ।
"नहीं, मालिक, मेरी पत्नी ने कहा था।" "गालम्चे से दासब्चे ने कहा था न?"
"हाँ, उसने महसे यही कहा था। परन्तु मेरी पत्नी ने जो किस्सा सुनाया था उसकी ओर मेरा ध्यान इसे पकड़ने के बाद गया। इसलिए कल मैं खुद गया और उस धोबिन चेन्नी से दर्याप्त कर आया। सब मालिक को कह सुनाया।"
"मालिक से मतलब हेगड़ेजी का ही है न?" "जी, हो।" "फिर?" "मालिक ने सारा वृत्तान्त सावधानी से सुना। अन्त में कहा, ठीक है।" "कुछ कहा नहीं?" "जी नहीं।" "तुम्हारे और उस धोबिन के बीच जो बातें हुई थीं, उतनी ही न?" "जी हाँ, उतनी ही।"
"ठीक, उसके आने तक उस विषय का ब्यौरा जाना नहीं जा सकेगा। अब तुम जाकर बैठो।"
सरपंच के कहे अनुसार लेंक जाकर अपनी जगह बैठा।
लेंक के बाद उसकी पत्नी गालब्बे बुलायी गयो। उसने परसों की घटना मोटे तौर पर इतनी ही बतायी, "परसों रात को मैं अकेली जा रही थी। इसने मेरा रास्ता रोका। उसने जो दो-चार बातें की उसीसे पता लग गया कि इसकी नीयत बुरी है। मुझे डर लगा! काँपने लगी। सोचा, हे भगवान्! क्या करूं। हमारे मालिक अपने नौकरचाकरों को काफी दिलासा और धीरज देते रहते हैं। मैंने धीरज से काम लिया। मेरी माँ कहा करती थी, जो पुरुष लम्पट होकर औरतों के पीछे फिरता है वह बड़ा डरपोक होता है। इससे मैं एकदम डरी नहीं। धीरे से खिसक जाने की सोचकर उसकी इच्छा के अनुसार चलनेवाली का-सा बहाना करके वह जैसा कहता वैसे उसीके पीछे चलने लगी। देर होते-होते मैं अधीर होने लगी, कुछ डरी भी। भगवान् को शाप देने लगी। हे भगवान! औरत बनाकर ऐसे लफंगे के हाथ पड़ने की दशा क्यों बनायी। कहीं कुछ आवाज सुन पड़ी कि वहीं, चूहा निकले तो बाघ निकला कहकर जैसे डराते हैं वैसे कुछ डराकर खिसक जाने के लिए समय की प्रतीक्षा करती रही। मुझ बद-किस्मत को ऐसा मौका ही नहीं आया। यह मेरा शील-भंग करने आगे बढ़ा। पास आया। पता नहीं भगवान् ने मुझे कैसी प्रेरणा दी, मैंने अपने व्यवहार से उसके मन में शंका पैदा न करके उसके दाहिने हाथ के अंगूठे की जड़ में अपने दाँत जोर से गड़ा दिये । इसमें
पट्टमहादेवी शास्तला :: 229