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"ठीक, वह भी करेंगे। फिलहाल तुम बैठी रहो।'
गालब्बे जाकर बैठ गयी। ब्रूतुग सोचने लगा, यह क्या हो गया, इसके बारे में कई रहस्य खुल रहे हैं। मैं इसके साथ बड़ी मिलनसारी से बरत रहा था। मुझे ऐसी सारी बातें, जो इसके बारे में एक-एक प्रकट हो रही हैं, मालूम ही नहीं हुई। जो भी हो, ये बातें हैं मजेदार शायद और बातें भी इस सिलसिले में प्रकट हो जाएँ।
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इसके बाद श्रीदेवी ने आकर गवाही दी प्रथम दिन मन्दिर की उस जाली के बाहर खड़े होकर बुरी दृष्टि से देखने की घटना से लेकर कितनी बार उसने कुदृष्टि से देखा । इस सबका ब्योरेवार बयान किया, 'भाई के घर सुरक्षा के लिए आयी बहिन हूँ। जिन्दगी भर मुझे ऐसी कुदृष्टि का सामना नहीं करना पड़ा था। फिर भी इन सब बातों को भाई से कहकर मैं उन्हें दुख नहीं देना चाहती थी। इसलिए चुप रही। स्त्री होकर जन्मने के बाद मर्द की आँखों से डरना नहीं चाहिए । पति भी मर्द है, बेटा भी मर्द है, पिता भी मर्द है, भाई भी मर्द है। देखने पर मनोविकार का शिकार मर्द ही बनते हैं, स्त्री नहीं । ऐसे पुरुषों की परवाह न कर उनके प्रति उदासीन रहना ही उनकी कुदृष्टि की दवा हैं। यही सोचकर मैं चुप रही। ऐसी बुरी खबर फैलाकर घृणाजनक बातें सुनाते फिरनेत्राले इस आदमी की वृत्ति का समाचार भाई ने जब सुना तो वे अत्यन्त दुखी हुए। मैंने कभी सोचा न था कि मुझे इस तरह सार्वजनिकों के सामने खड़े होकर बयान भी देना पड़ेगा। फिर भी मैं स्त्री हूँ। इस आदमी से सीधा कोई कष्ट न होने पर इतना निश्चित है कि यह बड़ा अयोग्य दुःशील व्यक्ति हैं। इससे सीधे सम्बन्धित व्यक्तियों की स्वानुभूति की यथार्थ कहानियाँ पंचों के सामने सुनायी जा चुकी हैं। मेरा अनुभव है इन कहानियों और बयानों का पूरक हो सकता है। जो सही सच्ची बात थी उसका खुले दिल से पंचों के सामने स्पष्ट निवेदन किया है। ऐसे अयोग्य और कुमार्गी पुरुषों को सम्भ्रान्त समाज के बीच रखना ही नहीं चाहिए। ये समाज - घातक हैं। "
हरिहरनायक ने अभियुक्त से इस बयान पर अपना अभिप्राय बताने को कहा । उसने कहा, "सब झूठ हैं, मैंने ऐसी बातें नहीं फैलायीं ।"
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'तुम्हारे अकेले का कहना सत्य हैं। और सारे बलिपुर के लोगों का कहना झूठ है, यही तुम्हारा मन्तव्य है ?"
"हाँ ।"
" वे ऐसा झूठ क्यों बोलेंगे ?"
कर्म
'मुझे क्या मालूम। कोई मर्द किसी औरत के साथ नाचता है तो वह उसका - फल हैं, उसमें मेरा क्या लाभ उससे मुझे कुछ फायदा हो सकता हो तब मान भी सकते हैं कि मैंने ऐसा प्रचार किया।"
"तुमने कभी हमारे हेगड़ेजी की बहिन को देखा ही नहीं ?" " देखा है, मगर उस दृष्टि से नहीं, जैसा बयान किया गया।"
पट्टमहादेवी शान्तला :: 231