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घर भी आया था। मैंने इसे गरम-गरम दूध भी पिलाया था।"
"यह तुम्हारे पति के साथ आया था या अकेला ही ?"
"पहले दो बार पति के साथ आया था। बाद को एकाध बार अकेला भी आया था।"
"जब तुम्हारा पति घर नहीं था तो यह क्यों आया?"
"वह काम के लिए आया। मेरा पत्ति कहीं गया था, गाँव से बाहर । यह दर्याफ्त करने कि वह आया या नहीं। इसने उनको अपने काम पर भेजा था।"
"इतना ही, उससे अधिक तुम्हें इसके बारे में जानकारी नहीं?" "आपका मतलब में नहीं समझी, मालिक।" "तुम्हारा पति इस व्यक्ति के किस काम के लिए गया था?" "वे सब बातें उन्होंने नहीं बतायी, मालिक।" "तुमने कभी पूछा नहीं?"
"एक दिन पूछा था। उन्होंने कहा इससे तुम्हारा क्या मतलब? मुझे धमकी देते हुए कहा कि औरत को कहा मानकर चुपचाप घर में पड़ी रहना चाहिए।"
"इससे चफ रह गयी। कुछ पूछा नहीं?"
'नहीं, मालिक। पर मुझे इसका यह व्यवहार ठीक नहीं लगा। ऐसे गैर आदमियों के साथ, जिनका ठौर-ठिकाना न हो, ऐसा कौन-सा व्यवहार होगा जो अपनी पत्नी तक से न कहा जाए?"
"तुम अपनी निजी बातों को किसी और से कहा करती हो?"
"शादी-शुदा होकर यहाँ आने के बाद मेरी एक सहेली बनी है। वह मेरी अपनी बहन से भी ज्यादा मुझसे लगाव रखती है। उससे मैंने कहा है।"
"क्या कहा है?"
"यह व्यवहार मुझे पसन्द नहीं। इन लोगों के व्यवहार को समझें कैसे, यही सवाल है।"
"फिर क्या हुआ?"
"उसने मेरी शंका ठीक बतायी, लेकिन इसका व्यवहार जानने का तरीका उस बेचारो को भी सूझा नहीं।"
"बता सकती हो, वह कौन है?''
"उसमें क्या रखा है, इसमें लुकी-छिपी क्या है। यही दासब्चे जो हमारे नेक की साली है।"
"क्या कहा?" आश्चर्य से हरिहरनायक ने पूछा। "दासब्बे है मालिक। वह यहाँ बैठी है।" बूतुग को भी आश्चर्य हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, बदमाश, इस मलिन के
पट्टमहादेवी शास्सना - 2