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से अपनी-अपनी जगह खड़ा हो गया। अन्त में हेग्गड़ेजी के वह श्रीमान् अतिथि आये, उनके पीछे शान्तला के साथ श्रीदेवो और उनक पाछे गालब्बे और दासब्बे आयौं। सबके पीछे लेंक आया। श्रीमान अतिथि पंचों की वन्दना कर हेग्गडे के दर्शाये आसन पर बैठे। पंचों ने कुछ सर झुकाकर मुसकराते हुए उनका अभिवादन किया। श्रीदेवी ने भी आते ही पंचों की वन्दना की और दिखाये गये आसन पर बैठी। शान्तला भी बन्दना करके अपनी माता के पास जा बैठी। गालब्बे, दासब्बे और लेंक सबने वन्दना की और हेग्गड़े के पास थोड़ी दूर पर बैठे।
तब हेग्गड़े ने पूछा, "रायण, सब आ गये न?" "हाँ, मालिक, सब आ गये।" "अब पंच अपना कार्य आरम्भ कर सकते हैं।" हेग्गड़े ने पंचों से विनती की।
पंचों ने आपस में कुछ बातचीत की। तब तक लोग बलिपुर के लिए अपरिचित इस श्रीमन्त अतिथि की ओर कुतूहल भरी दृष्टि से देखते हुए आपस में ही फुसफुसाने लगे। पंचों की बातचीत खतम होने पर भी यह फुसफुसाहर चलती रही तो पंचों ने गम्भीर घण्टानाद की तरह कहा, "खामोश ।'
सरपंच हरिहरनायक ने कहा, "इस मामले पर विचार-विनिमय कर एक निर्णय पर पहुँचे हैं। हेगड़े से प्राप्त शिकायत-पत्र को हमने पूरा पढ़कर उस अभियुक्त को सुनवाया है। इसलिए हमने पहले उसका बयान सुनने का निर्णय किया है। पहले उसे शपथ दिलायी जाए।" __अभियुक्त के पास आकर धर्मदर्शी ने कहा, "तुम अपने इष्टदेव के नाम पर शपथ लो कि मैं इस न्यायपीठ के सामने सत्य कहूँगा।"
"शपथ लेकर भी अगर कोई झूठ बोले तो उसका क्या दण्डविधान है?" अभियुक्त ने पूछा।
"वह न्यायपीठ से सम्बन्धित विषय है। न्यायपीठ के सामने सत्य ही की अपेक्षा की जाती हैं। शपथ लेने के बाद बयान देने पर, उसके सत्यासत्य के निर्णय का अधिकार भी इस न्यायपीठ का है।"
"ठीक है, न्यायपीठ की आज्ञा से मैं अपने इष्टदेव की शपथ लेकर सत्य ही कहूँगा।"
"हेग्गड़े ने जो शिकायत दी है सो तुम जानते हो। क्या तुम इसे स्वीकार करते हो?" हरिहर नायक ने पूछा।
"आपके हेग्गड़े सत्यवान् हैं, उन्होंने जो शिकायत दी है, वह सत्य है इसलिए । मुझे स्वीकार करना चाहिए, आपका क्या यही आशय है?"
___ "इस तरह न्यायपीठ से सवाल करना अनुचित है। यह व्यवहार कन्नड़ संस्कृति के विरुद्ध है। तुम्हारे व्यवहार से लगता है कि तुम इस संस्कृति के नहीं हो।"
TIS :. 'पमहादेवी शान्तला