________________
हुआ न? मुझे अपने से ही घृणा हो रही है।"
"उस गन्दगी को उसी पर थूक दिया न? जाने दो, यह बताओ कि क्या हुआ।"
"चलो, चलते-चलते सब बता दूंगी।" रास्ते में उसने सारा विवरण ज्यों-कात्यों सुना दिया। फिर दोनों मौन, घर पहुंचे।
इधर गाल के आने में देरी होने से हेग्गड़े मारसिंगय्या घबरा गये थे। वह क्षण-क्षण राह देखते बरामदे में चहलकदमी करने लगे। रायण को गालब्जे के साथ देखते ही बरामदे की जगत से एकदम कूदकर तेजी से उनके पास आये, "देर क्यों हो गयी? कुछ अनहोनी तो नहीं हुई?"
"घबराने की कोई बात नहीं, मालिक। देर होने पर भी सब काम सफलता से हो गया।" गालब्बे ने कहा।
“अन्दर चलो, गालब्बे। तुम सुरक्षित लौटी, मैं बच गया, वरना तुम्हारी हेग्गड़ती को समझाना असम्भव हो जाता।" मारसिंगय्या ने कहा।
गालब्बे अन्दर जाने लगी तो उसने फिर पूछा, "जो बताया था वह याद है न?" "हाँ, याद है।" इशारे से गालब्बे ने बताया और अन्दर गयी।
"रायण, क्या-क्या हुआ, बताओ।" कहते हुए रायण के साथ मारसिंगल्या बरामदे के कमरे में आये।
बुधवार, दूज को प्रस्थान शुभ मानकर श्रीदेवी की विदा की तैयारियां हो रही थीं। उन्हें मालूम हो चुका था कि जिसने उसे छेड़ा था उसे पकड़ लिया गया है। वास्तव में, वहाँ क्या और कैसे हुआ, आदि बातों का ब्यौरा केवल चार ही व्यक्ति जानते थे, गालब्बे, रायण, मारसिंगय्या और वह बदमाश। यह हेग्गड़ेजी की कड़ी आज्ञा थी। यहाँ तक कि श्रीदेवी और हेग्गड़ती को भी इससे अनभिज्ञ रखा जाए। हेग्गड़े का घर बन्दनवार और पताकाओं से सजाया गया था। घर के सामने का विशाल आँगन लीप-पोतकर स्वच्छ किया गया था। जगह-जगह रंग-बिरंगे चित्र और रंगोलियों बनायी गयी थीं। हेग्गेड़े का घर उत्साह से भर गया था।
यात्रा की तैयारियां बड़े पैमाने पर धूमधाम के साथ होने लगीं। एक प्रीतिभोज की व्यवस्था की गयी थी। बहुत मना करने पर भी श्रीदेवी के शास्त्रोक्त रीति से तैलस्नान का आयोजन माचिकब्चे कर रही थी।
तैल-मार्जन के परम्परागत क्रम में उसने श्रीदेवी को मणिमय पीठ पर बैठाकर हल्दी-कुंकुम लगाया, तेल लगाते समय गाया जानेवाला एक परम्परागत लोकगीत बतर्ज गाया गया। गाती हुई खुद माचिकब्बे ने चमेली के फूल से श्रीदेवी को तेल लगाया।
श्रीदेवी ने आश्चर्य से कहा, "भाभी, आपका कण्ठ कितना मधुर है।"
पट्टमहादेवी शान्तल्ला :: 213