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न?"
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'क्या हुआ जी, अँधेरा है साफ नहीं दिखता।"
"कुछ नहीं, तुम्हारी कोहनी नाक पर लगी, कुछ दर्द हुआ। काँटा निकल गया
"आखिर निकल ही गया।"
"कहाँ है ?"
+1 "फेंक दिया।"
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'अब भी दर्द हो रहा है।"
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'अब उतना नहीं ।"
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'तुम्हारा नाम क्या है ?"
"यह सब क्यों जी, उठो, देरी हो रही है। कल अपनी भाभी को लेकर फिर भी आना है।"
"हाँ, ठीक है। जल्दी काम करें और चलें।"
" कर लिया है न काम ? काँटा निकल गया है, चलेंगे।"
पूछा 1
"
'पर इतने से काम नहीं हुआ न?"
1
'तुम क्या कहना चाहते हो ?"
"वही।" "उसने गालब्बे की कमर में हाथ डाला |
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'हाय, हाय, मुझे छोड़ दीजिए। आपकी हथेली लोहे जैसी कड़ी है।"
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'हथेली का ऐसा कड़ा होना आदमी के अधिक पौरुष का लक्षण है।"
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'आप तो सामुद्रिक शास्त्र के ज्ञाता मालूम पड़ते हैं।" कहती हुई वह उसके हाथ को सूँघने का बहाना करके नाक तक लायी और उसके अंगूठे की जड़ में सारी शक्ति से दाँत गड़ा दिये ।
इतने में मण्डप में दोनों ओर जलती हुई मशालें थामे आठ लोग आ पहुँचे ।
गालब्बे ने उसका अँगूठा छोड़ा और मुँह में उसका जो खून था उसे उस पर थूककर दूर खड़ी हो गयी। उस आदमी ने भागने की कोशिश की, परन्तु इन लोगों ने पकड़कर उसके दोनों हाथ बाँध दिये और उसे साथ ले गये ।
"इतनी देरी क्यों की, रायण ?" गालब्बे ने आँसू भरकर पीछे रह गये रायण से
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'कुछ गलतफहमी हो गयी। भूल से मैं पश्चिम की ओर वाले मण्डप की तरफ चला गया था। अचानक याद आयी। इधर से उधर, इस उत्तर दिशा की ओर बाले मण्डप की ओर भागा भागा आया। कोई तकलीफ तो नहीं हुई न ?"
"मैं तो सोच चुकी थी कि आज मेरा काम खतम हो गया, रायण। दिल इतने जोर से धड़क रहा था, ऐसा लग रहा था दिल की धड़कन से ही मर जाऊँगी। मेरी सारी बुद्धि-शक्ति खतम हो गयी थी। चाहे हाथ का ही हो, उस बदमाश का स्पर्श
21 : महादेवी शान्तला