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किया है ? भैया-भाभी मुझसे बड़े, बड़ों से प्रणाम स्वीकार करने जैसा क्या पाप किया मैंने?"
मारसिंगय्या ने कोई उत्तर न देकर रायण की ओर मुड़कर कहा, "रायण, यहाँ आओ। वहाँ देखो, उस अश्वत्थ वृक्ष की जगत पर धारीदार अँगरखा पहने, नारंगी रंगवाली जरी की पगड़ी बाँधे जो है, हमारे मन्दिर के अन्दर जाने के बाद तुम उसे भी मन्दिर के अन्दर ले आना।" और श्रीदेवी की ओर मुड़कर पूछा, "ठीक है न?" श्रीदेवी ने इशारे से बताया, "ठीक है । "
सबने महाद्वार के अन्दर प्रवेश किया। मन्दिर के अन्दर किसी के भी प्रवेश की मनाही थी, हेगड़ेजी की कड़ी आज्ञा थी ।
पहले ही से कवि बोकिमय्या, गंगाचारी आदि आप्तजन अन्दर के द्वार पर प्रतीक्षा कर रहे थे।
प्राकार में श्वेत छत्र युक्त कलश के साथ परिक्रमा करके सब लोग अन्दर के द्वार पर पहुँचे। बोकिमय्या, गंगाचारी आदि ने श्रीदेवी को झुककर प्रणाम किया । श्रीदेवी को ऐसा लगा कि यह सब पूर्व-गियो है। यह सन्न किया गया सो उसे मालूम नहीं हुआ। सभी बातों के लिए उसी को आगे कर दिया जाता था, यह उसके मन को कुछ खटकता रहा। परन्तु वह लोगों के बीच, कुछ कह नहीं सकती थी। परिक्रमा समाप्त करके सब लोगों ने मन्दिर के नवरंग मण्डप में प्रवेश किया। उसी समय रायण पहुँचा।
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'अकेले क्यों चले आये ?" कुछ पीछे खड़े मारसिंगय्या ने रायण से पूछा । रायण ने कहा, "उसने कहा कि मैं नहीं आऊँगा।"
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"क्यों ?"
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'उसने यह नहीं बताया। मैंने बुलाया, उसने कहा, नहीं आऊँगा । वह बड़ा लफंगा मालूम पड़ता है।"
" तुम्हें मालूम है कि वह कौन है ?"
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'नहीं, पर उसके देखने के ढंग से लगता है कि वह बहुत बड़ा लफंगा है।" "ऐसा है तो एक काम करो।" उसे थोड़ी दूर ले जाकर मारसिंगय्या ने उसके कान में फुसफुसाकर कुछ कहा । वह स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाकर वहाँ से चलने को हुआ। " अभी नहीं, तुम यहाँ आओ। पूजा समाप्त कर बाहर जाने तक वह वहीं पड़ा रहेगा। पूजा समाप्त हो जाए तो तीर्थ प्रसाद के बाद तुम कुछ पहले ही चले जाना ।" कहकर मारसिंगय्या मन्दिर के अन्दर गया। रायण ने भी उसका अनुसरण किया
बड़े गम्भीर भाव से पूजा कार्य सम्पूर्ण हुआ। चरणोदक, प्रसाद की थाली लेकर पुजारी गर्भगृह से बाहर आया श्रीदेवी के समक्ष । पुजारी उसका रूप देखकर चकित
206 :: पट्टमहादेवी शान्तला