________________
एरेयंग प्रभु ने कहा, "महाराज को असन्तुष्ट नहीं होना चाहिए। सबकी सम्मति के अनुसार बरतने में राष्ट्र का हित है-ऐसा समझने पर शेष स्वार्थ गौण हो जाता है। अतः महाराज को इस सर्व-सम्मति के अनुकूल होकर रहना ही उचित है। आपकी छत्रछाया हम सबको शक्ति देती रहेगी, आपको सन्निधि राष्ट्र के लिए रक्षा-कवच
चिण्णम दण्डनाथ अब तक मौन होकर सारी बातें सुन रहे थे। अब वे उठ खडे हुए और बोले, "एक तरह से बात अब निश्चित हो गयी है, ठीक, फिर भी महाराजा और युवराज की अनुमति से मैं भी कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। यह गोष्ठी आत्मीयों की है, आत्मीयता से विचार-विनिमय करने के मामे बुलागी गयी है-स्वयं महाराज - ने ही यह बात स्पष्ट कर दी है। एक तरह से समस्या के सुलझ जाने की भावना तो
हो आयी है; फिर भी महासन्निधान ने जो विचार प्रस्तुत किये उन विचारों पर बिना किसी संकोच के निश्शंक होकर हमें सोचना चाहिए। बस यही मेरी विनती है। प्रायः साथ रहकर मैं अपने श्रीमान युवराज की पितृभक्ति, राज्यनिष्ठा और उनके मन की विशालता आदि को अच्छी तरह समझता हूँ। उनका व्यवहार उनके व्यक्तित्व की दृष्टि से बहुत ही उत्तम और आदरणीय है। उनके आज के वक्तव्य और व्यवहार ने उन्हें
और भी ऊँचे स्तर पर पहुंचा दिया है। महासन्निधान की इच्छा उनके अन्तःकरण से प्रेरित होकर अभिव्यक्त हुई है। इस तरह उनको यह सहज अभिव्यक्ति किसी बाहरी प्रभाव के कारण नहीं। हमारी इस पवित्र पुण्यभूमि पर परम्परा से ही अनेक राजेमहाराजे और चक्रवर्ती वार्धक्य में स्वयं प्रेरित होकर अपना सिंहासन सन्तान को सौंप राज्य भार से मुक्त हुए हैं। उसी परम्परा के अनुसार, महाराज ने भी अपनी ही सन्तान, युवराज-पद पर अभिषिक्त, ज्येष्ठ पुत्र को अपने जीवित रहते सिंहासनारूढ़ कराने का अभिमत व्यक्त किया है। यह इसलिए भी कि पिता के जीवित रहते, युवराज सिंहासन पर बैठने में संकोच करेंगे, यह सोचकर ही युवराज को समझा-बुझाकर उन्हें स्वीकृत कराने के उद्देश्य से महाराज ने अपना मन्तव्य आप लोगों के समक्ष रखा। परन्तु हम इस दिशा में कुछ प्रयत्न किये बिना ही निर्णय पर पहुंच रहे हैं-ऐसा लग रहा है। इसलिए मैं अपनी ओर से और आप सभी की तरफ से आग्रहपूर्वक यह विनती करता हूं कि इस समय महाराज के आदेशानुसार, सिंहासनारूढ़ होकर राज्याभिषेक के लिए युवराज की आत्मस्वीकृति सभी दृष्टियों से उचित होगी। कृपा करके युवराज ऐसा करें, यह मेरी प्रार्थना है।"
मरियाने दण्डनायक झट से बोल उठे, "इस तरह युवराज पर जोर डालने के लिए हमारी कोई विशेष इच्छा नहीं है।"
चिण्णम दण्डनाथ ने फिर प्रश्न किया, "तो फिर जैसा है वैसा ही बने रहने में आपका स्वार्थ है-यह मतलब निकाला जाए?"
| 10 :: पट्टमहादेवी शान्ताना