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भलाई के लिए कहा।"
"यह बड़ा बृहस्पति है।" बल्लाल के आत्माभिमान को कुछ धक्का-सा लगा।
"आपने कहा, बहुत अच्छा था। क्यों ऐसा कहा? आपको अच्छा क्यों लगा? बताइए तो।"
"जब तुम दोनों राधा-कृष्ण बनकर आयीं तो लगा साक्षात राधा और कृष्ण ही उतरे हैं।"
"अर्थात् सज-धज इतना अच्छी थी। है न!' "हो।" "आपने जो देखा वह वेषभूषा थी। नृत्य नहीं था।"
"उन्होंने वेषभूपा के साथ नृत्य भी देखा। उसमें कमियाँ भी देखी जो बिना ठीक किये रह जाएं तो बाद में ठीक नहीं की जा सकती। और स्पष्टतया गलती क्या और कहाँ थी, यह भी उन्होंने बताया । यदि हम उनकी सूचना के अनुसार अभ्याम करें तो हम उस विद्या को अच्छी तरह सीख सकती हैं।"
"अच्छी बात है, अनुसरण करो, कौन मना करता है।" पद्मला ने कहा। "उन्होंने हम दोनों के हित के ही लिए तो कहा।''
"अच्छा, तुप वैसा ही करो। हमारे गुरुजी ने तो कुछ भी कमी नहीं बतायो, बल्कि कहा कि ऐसे शिष्य उत्कल देश में मिले होते तो क्या-क्या नहीं कर सकते थे। वहाँ तीन साल में जितना सिखाया जा सकता है उतना यहाँ छह महीनों में सिखा दिया है।" पद्मला ने गुरु की राय बतायी।
"इसीलिए जितना वास्तव में सिखाना चाहिए उतना वे सिखा नहीं रहे हैं, ऐसा नगता है।" चामला ने कहा।
"यही पर्याप्त है। हमें तो कहीं देवदासी वनकर हाव-भाव विस्लास के साथ रथ के आगे या मन्दिर की नाट्यशाला में नाचना तो है नहीं। जितना हमने सीखा है उतना ही हमें काफी है।"
"यह ठीक बात है।' बल्लाल ने हामी भरी।
'ठीक है. जाने दीजिए, अपनी नाक सोधी रखने के लिए बात करते जाने से कोई फायदा नहीं।'' कहती हुई चामला चली गयी।
दृसरे दिन से टस उत्कल के नाट्याचार्य को केवल चामला को सिखाना पड़ा। पद्मला ने जो भाव प्रकट किये थे उनपर चामध्वा की पूर्ण सम्मति रही क्योंकि वह 'मानती थी कि एक-न-एक दिन महारानी बननेवाली उसकी बेटियों को लोगों के सामने नाचने की जरूरत नहीं। फिर भी वह चामला की बात से सहमत थी क्योंकि उसकी कल्पना भी कि चामना यदि बिट्टिदेव की सलाह के अनुसार घरतंगी तो उन दोनों में भाव-सामंजस्य होकर दोनों के मन जुड़ जाएँगे। अच्छी तरह से विद्या का
10 :: पट्टमहादेव शान्तला