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इससे चन्दलदेवी एक दूसरी ही दुनिया में जा पहुंची। शान्तला को अपनी गोद में खींचकर बैठा लिया और उसे चूम-चूमकर आशीष देती हुई बोली, "चिरंजीवी होओ, तुम्हारा भाग्य खूब-खूब चमके, बेटी।" उसकी आँखें अश्रुपूर्ण हो गर्यो।
यह देखकर शान्तला बोली, "उसे भी ऐसा ही हुआ था।" आँखें पोंछती चन्दलदेवी ने पूछा, "किसे?" "सोसेऊरु के रेविमय्या को।" शान्तला बोली। "क्या हुआ था उसे?"
शान्तला ने रेविमय्या की रूप-रेखा का यथावत् वर्णन किया जो उसके दिल में उस समय तक स्थायी रूप से अंकित हो चुकी थी। फिर कहा, "फूफीजी, आपने भी वहीं किया न अब?"
"हाँ बेटी, निश्छल प्रेम के लिए स्थान-मान की कोई शर्त नहीं होती।" "हमारे गुरुजी ने कहा था कि कोई राजा हो या रंक, वह सबसे पहले मानव
"गुरु की यह बात पूर्णत: सत्य है, अम्मा । तुम्हारे गुरु इतने अच्छे हैं, इस बात का बोध मुझे आज हुआ। कोई राजा हो या रंक, वह सबसे पहले मानव है, कितनी कीमती बात है, कितना अच्छा निदर्शन।"
"निदर्शन क्या है, फूफी, इसमें ?"
चन्दलदेवी तुरन्त कुछ उत्तर न दे सकी। कुछ देर बाद बोली, "वह रेविमय्या एक साधारण नौकर है तो भी उसकी मानवीयता कितनी ऊँची है। मानवीयता का इससे बढ़कर निदर्शन क्या हो सकता है।"
"यह तो इस निदर्शन का एक पहलू है, आपने किसी राजा-महाराजा का निदर्शन नहीं दिया।"
"उसके लिए निदर्शन की क्या जरूरत है, वह भी तो मानव ही है।' चन्दलदेवी होठों पर जुबान फिराकर थूक सटकती हुई बोली।
"बात रेविमय्या और आपके बारे में हो रही थी, रेविमय्या नौकर है, लेकिन आप राजरानी नहीं, फिर यह तुलना कैसी, मैं यही सोच रही हूँ।"
"अम्माजी, इस प्रश्न का उत्तर चाहे जो हो, उससे इसमें सन्देह नहीं कि तुम बड़ी सूक्ष्म-बुद्धिवाली हो। अच्छा, तुमने राजाओं की बात उठायी है तो तुम्हीं से एक बात पूछूगी। तुम स्त्री हो, और तुम घुड़सवारी सीख रही हो, फिर तीर-तलवार चलाना भी सीखने की अभिलाषा रखती हो। क्या यह सब सीखने को तुम्हारे गुरुजी ने कहा है?" चन्दलदेवी ने कहा।
"न, न, वे क्यों कहेंगे?" "फिर तुममें यह अभिलाषा कसे पैदा हो गयी जबकि अभी तुम बच्ची ही
12 :: पट्टमहादेवी शान्तला