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"बड़ी रानी हैं तो बहुत अच्छी, परन्तु उनके पास साधारण लोग नहीं जा सकते क्योंकि कल्याण के राजमहल की व्यवस्था ही ऐसी है। इसलिए वे लोगों के साथ कैसे बरतती हैं, यह मुझे नहीं मालूम। सामान्य नागरिकों के साथ सम्पर्क होने पर शायद वे वैसा ही व्यवहार करेंगी जैसे मनुष्य मनुष्य के साथ किया करता है।"
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'यह कहाँ सम्भव है ? उनका सम्बन्ध-सम्पर्क आम लोगों के साथ हो ही नहीं सकता।"
" हो सकता है, जरूर हो सकता है। युद्ध काल में वह न हो सके, यह दूसरो बात है। सामान्य लोगों के सम्पर्क से दूर, चारों ओर किला बाँधे रहनेवाले के व्यक्तित्व का विकास कैसे हो सकता है ?"
"तो क्या आपकी बड़ी रानी उस तरह के किले में रहनेवाली हैं ?"
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'अब वे उस किले में नहीं हैं।"
44 'यह कैसे कह सकती हैं ?"
" वे तो युद्ध-शिविर से गायब हो गयी हैं। ऐसी हालत में उस किले में रह भी कैसे सकती हैं ?"
"जिनके हाथ में नहीं पड़ना चाहिए, ऐसे ही लोगों के हाथ अगर पड़ गयी हों
तो ?"
'आपको मालूम नहीं, भाभी, हमारी बड़ी रानीजी अपने को ऐसे समय में बना लेने की युक्ति अच्छी तरह जानती हैं। "
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'तब तो यह समझ में आया कि तुम इस बात को जानती हो कि वे कहाँ हैं।" " इतना मालूम है कि वे सुरक्षित हैं। इससे अधिक मैं नहीं जानती।" 'उतना भी कैसे जानती हो ?"
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'जो नायक मुझे यहाँ छोड़ गया, उसी ने यह बात कही थी कि बड़ी रानीजी अत्र सुरक्षित स्थान में हैं, चिन्ता की कोई बात नहीं।"
"ऐसा है, तब तो ठीक है।"
उनकी थालियाँ खाली हो गयीं और दुबारा भी भरी गयीं परन्तु शान्तला की थाली भरी की भरी ही रही।
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गालब्बे ने कहा, "अम्माजी ने तो अभी तक खाया ही नहीं।"
ननद-भाभी ने कहा, "अम्माजी, जब तक तुम खा न चुकोगी तब तक हम बात नहीं करेंगे 1 **
नाश्ता समाप्त होते ही श्रीदेवी ने फिर वही बात उठायी, "अब कहिए भाभी, दोरसमुद्र की बात । "
" हम सब युवरानीजी के साथ दोरसमुद्र गये। वहाँ का सारा कारोबार बड़े दण्डनायक मरियाने की छोटी पत्नी चामव्वे की देखरेख में चल रहा था।"
पट्टमहादेवी शान्तला 193