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बुलाता-सा दिखाई पड़ा। मैं तेजी से अन्दर चली गयी। भैया और बगल में आप, आप दोनों के सामने अप्पाजी खड़ी थी। आपकी बगल में गालब्बे थी, उसकी बगल में रायण खड़ा था। मैं मुख-मण्डप से होकर भैया के पास घुसकर खड़ी हो गयी। तब भगवान की आरती उतारी जा रही थी। वह आदमी भी बाद में अन्दर आया। पुजारीजी आरती देने लाये तो भैया ने पहले मुझे दिलायो। तब एक विचित्र लच्च-लच्छ सुनाई पड़ी . छिपकली भाजपा वालने र उँगली की मार से आवाज की जबकि वह आवाज उसी व्यक्ति के मुंह से निकली थी। अन्न जो अफवाह आप सुना रही हैं उसका स्रोत बही व्यक्ति है, मुझे यही लग रहा है। मैंने चार-छह बार देखा भी है उस व्यक्ति को मुझे ललचायी आँखों से घूरते हुए। वह एक कोड़ा है। उससे क्यों डरें?"
"यह बात बहुत दूर तक गयी है, श्रीदेवी। इसी से मालिक बहुत व्यथित हैं। अपना अपमान तो वे सह लेंगे। अपने पास धरोहर के रूप में रहनेवाली तुम्हारा अपमान उनके लिए सह्य नहीं। इसलिए उनकी इच्छा है, ऐसे नीच लोगों से तुम्हें दूर रखें।"
"ऐसे लोगों को पकड़कर दण्ड देना चाहिए। भैया जैसे शूर-वीर को डरना क्यों चाहिए।"
"आप दोनों के बीच का सम्बन्ध कितना पवित्र है, इसे हम सब जानते हैं। लेकिन, इस पवित्र सम्बन्ध पर कालिख पोतकर, एक कान से दूसरे तक पहुँचकर बात महाराज तक पहुँच जाए तो? तुमको दूर अन्यत्र रखा जाए तो यह अफवाह चलतेचलते ही मर जाएगी, यही उनका अभिमत है। कीचड़ उछलवा, हास्यास्पद बनने से बचने के लिए उनका विचारित मार्ग ही सही है, ऐसा मुझे लगता है।"
"भाभी, आप निश्चिन्त रहें । मैं भैया से बात करूँगी, बाद में ही कोई निर्णय लेंगे।"
"मैंने तुम्हें कुछ और ही समझा था। अब मालूम हुआ कि तुम्हारा दिल मर्दाना
"ऐसा न हो तो स्त्री के लिए उसका रूप ही शत्रु बन जाए, भाभी। रूप के साथ केवल कोमलता और मार्दव को ही विकसित करें तो वह काफी नहीं होता । वक्त आने पर कोमलता और मार्दव को फौलाद भी बनना पड़ता है। अभ्यास से उसे भी अर्जित करना जरूरी है।"
"तुममें ऐसी भावनाओं के आने का कारण क्या है, श्रीदेवी?" "राजमहल का वास और अपनी जिम्मेदारी का भार।" "तो क्या तुम बड़ी रानीजी की अंगरक्षिका बनकर रही ?"
"आत्मविश्वास भी अंगरक्षक जैसा ही है, पत्येक स्त्री को आत्म-विश्वास साधना द्वारा प्राप्त करना चाहिए।"
198 :: पट्टमहादेवी शान्तला .