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बलिपुर में शान्तला और श्रीदेवी के बीच आत्मीयता बढ़ती गयी। शान्तला के आग्रह पर श्रीदेवी ने उसे चालुक्यों का सारा वृत्तान्त बताया। उसे बादामि के मूल चालुक्यों के विषय में विशेष जानकारी न थी, परन्तु कल्याणी के चालुक्यों की बाद की पीढ़ी के बारे में उसे काफी अच्छा ज्ञान था। खासकर धारानगरी के इस हमले के मूल कारण का जिक्र करते हुए उसने बताया कि परमारों के राजा मुंज के समय से अब तक चालुक्य चक्रवर्ती और परमार मुंज के बीच एक-दो नहीं, सोलह-अठारह बार युद्ध हुए और उनमें चालुक्यों की विजय हुई। अन्त में, पराजित परमार नरेश मुंज के सभी विरुद छीनकर चालुक्य नरेश ने स्वयं धारण कर लिये। मुंज कारावास में डाल दिया गया जहाँ उसे किसी से या किसी को उससे मिलने पर सख्त पाबन्दी थी। परन्तु कारावास के भीतर उसे सब सहालियतें दी गयी थी।
"परन्तु यह भी सुनने में आया कि परमार मुंज ने भी एक बार चालुक्य चक्रवर्ती को हराकर पिंजड़े में बन्द करके अपने शहर के बीच रखवाया था और उसे देखकर लोगों ने उसके सामने ही कहा कि 'यह बड़ा अनागरिक राजा है. इसके राज्य में न साहित्य है न संगीत, न कला है न संस्कृति।" शान्तला ने टोका।
"यह सब तुम्हें कैसे मालूम हुआ, अम्माजी?" श्रीदेवी ने पूछा। "हमारे गुरुजी ने बताया था।" "तो फिर तुमने मुझसे ही क्यों पूछा, उनसे क्यों नहीं?"
"वे विषय संग्रह करते हैं और बताते हैं, जबकि आप वहीं रहकर उन बातों को उनके मूल रूप में जानती हैं, इसलिए आपकी बातें स्वभावतः अधिक विश्वसनीय होती हैं।"
"जितना मैंने प्रत्यक्ष देखा उतना तो निर्विवाद रूप से सही माना जा सकता है लेकिन कुछ तो मैंने भी दूसरों से ही जाना है जो संगृहीत विषय ही कहा जाएगा।"
"क्या वहाँ राजमहल में इन सब बातों का संग्रह करके सुरक्षित नहीं रखा जाता है?" शान्तला ने पूछा।
श्रीदेवी ने शान्तला को एकटक देखा, उसे कदाचित् ऐसे सवाल की उससे अपेक्षा नहीं थी, "पता नहीं, अम्माजी, यह बात मुझे विस्तार के साथ मालूम नहीं।"
"क्या, फूफीजी, आप बड़ी रानी चन्दलदेवीजी के साथ ही रहीं, फिर भी आपने पूछा नहीं।"
"यों राजघराने की बातों को सीधे उन्हीं से पूछकर जानने की कोशिश कोई कर सकता है, अम्माजी? गुप्त बातों को पूछने लगें तो हमपर से उनका विश्वास हो उठ जाएगा, हम बाहर निकाल दिये जाएंगे इसलिए इन बातों का तो जन्न तब मौका देखकर संग्रह ही किया जा सकता है।"
"ऐसा है लो एक सरल व्यक्ति का तो राजमहल में जीना ही पुश्किल है।"
18 :: पट्टमहादेवी शान्तला