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"ऐसा तो मैं नहीं कह सकता क्योंकि अभी वह छोटा और दान है, यद्यपि उसे उस हेग्गड़ती की बेटी को छोड़कर दुनिया में और कोई नहीं चाहिए।"
"इतना क्यों?"
"वह समझता है कि वह सरस्वती का ही अवतार है, बुद्धिमानों से भी अधिक बुद्धिमती है।"
"हाँ होगी, कौन मना करता है ? लेकिन इससे चामला को पसन्द न करने का क्या सम्बन्ध है?"
"कहता है कि तुम लोग कुछ नहीं जानती हो।" "ऐसा क्या?" पद्मला के मन में कुछ असन्तोष की भावना आयी।
"मेरे और उसके बीच इस पर बहुत चर्चा हुई है कि तुम लोगों के नृत्य में भाव ही नहीं था।"
रसोइन देकव्वा के साथ उसी वक्त वहाँ पहुँची चामला ने बल्लाल की यह बात सुन ली। फिर भी नाश्ता करते समय इसकी चर्चा न करने के उद्देश्य से वह चुप रही। पद्यला और बल्लाल ने नाश्ता शुरू किया। बल्लाल का थाल खाली होते ही चामला ने दूसरा थाल उसके सामने पेश किया।
बल्लाल ने कहा, "मुझसे नहीं हो सकेगा।"
'आप ऐसे नमः कसो माग काम? अब चुपचाप इसे खा लीजिए, नहीं तो इस भूल के लिए दुगुना खाना पड़ेगा।"
"मैंने क्या भूल की?"
"पहले इसे खा लीजिए, बाद में बताऊँगी। पहले बता देते तो और दो थाल लेती आती।"
"नहीं, अब इतना खा लूं तो बस है।" बल्लाल ने किसी तरह खा लिया, बोला, "हाँ, खा लिया, अब कहो।"
___ "आपके भाई ने जो बातें कहीं, उन्हें घुमा-फिराकर अपना ही अर्थ देकर, आप दीदी से कह रहे हैं।"
"धुमा-फिराकर क्यों कहेंगे?" पद्मला ने कहा।
"अपने को सही बतलाने के लिए। अपने को अच्छा कहलाने के लिए!" चामला की बात जरा कठोर थी।
"वे सो अच्छे हैं ही इसमें दिखाने की जरूरत क्या है?" "क्या उनसे ज्यादा उनके भाई के बारे में मालूम है तुम्हें?" "हाँ।" "कैसे?" "कैसे क्या? उन्होंने दिल खोलकर बात की और जो भी कहा सो हमारी ही
पट्टमहादेवो शान्ताना :: 175