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"अच्छा, एरेयंग प्रभुजी, ऐसी व्यवस्था हो कि हम भी आपके साथ रहें।"
"सन्निधान की सुरक्षा-व्यवस्था की जिम्मेदारी हम पर है।" कहते हुए प्रभु एरेयंग ने कदम बढ़ाये । हिरिय चलिकेनायक ने दौड़कर परदा हटाया और एरेयंग प्रभु के बाहर निकलने के बाद खुद बाहर आया।
चामला ने अपने और बिट्टिदेव के बीच जो बातचीत हुई थी, वह अपनी माँ को ज्योंकी त्यों सुना दी। उसने सारी बातें बड़े ध्यान से सुनी और बेटी चामला को अपने बाहुओं में कस लिया।
"बेटी, तुम बहुत होशियार हो, आखिर मेरी ही बेटी हो न?" बेटी की प्रशंसा के बहाने वह अपनी प्रशंसा आप करने लगी। खासकर इसलिए कि युवरानी ने अपने बेटे के साथ बेटी चामला को भी उपाहार पर बुलवाया। इसका मतलब यह हुआ दांव ढंग से पड़ा है और आशा है, गोटी चलने लगेगी। अब इसे पूरी तरह सफल बनाना ही होगा। चाहे अब मुझे अपनी शक्ति का ही प्रयोग क्यों न करना पड़े। उसने बच्ची का मुंह दोनों हाथों से अपनी ओर करके पूछा, "तुम उनसे शादी करोगी बेटी?"
बेटो चामला ने दूर हटकर कहा, "जाओ माँ, तुम हर वक्त मेरी शादी-शादी कहती रहती हो जबकि अभी दीदी की भी शादी होती है।"
"तुमने क्या समझा, शादी की बात कहते ही तुरन्त शादी हो ही जाएगी? मैंने तो सिर्फ यह पूछा है कि तुम उसे चाहती हो या नहीं।"
चामला माँ की तरफ कनखियों से देखती हुई कुछ लजाकर रह गयी। वह बेरी को फिर आलिंगन में कस उसका चुम्बन लेने लगी कि पदाला और बल्लाल के हंसते हुए उधर ही आने की आहट सुन पड़ी। इन लोगों को देख उनकी हंसी रुकी। बेटी को दूर हटाकर वह उठ खड़ी हुई और बोली, "आइए राजकुमार, बैठिए। चामू देकच्या से कहो कि राजकुमार और पद्मला के लिए नाश्ता यहीं लाकर दे।"
कुमार बल्लाल ने कहा, 'नहीं, मैं चलेंगा। माँ मेरी प्रतीक्षा कर रही होंगी। मत जाओ, चामला।"
"माँ ने जो कहा, सो ठीक है। युधरानीजी के साथ छोटे अप्पाजी और मैंने अभी-अभी नाश्ता किया है।'' चामला ने कह दिया।
बल्लाल कुमार को विश्वास न हुआ, "झूठ बात नहीं कहनी चाहिए।" "यदि सच हो तो?" "हाउ?"
पट्टमहादेवी शान्तलः :: 173