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कारण खिसक गयी होगी और शत्रुओं तक यह खबर पहुँचा चुकी होंगी । इस विचार से उन्होंने सर चयों का पता लगाने का प्रायन जोरों से जाना करहाट और कल्याण में अपने गुप्तचरों को और भी चौकन्ना होकर काम करने तथा जिस किसी पर सन्देह हो उसे पकड़कर बन्दी बनाने का निर्णय किया। एरेयंग प्रभु ने कहा, "वह तो हमारे विश्वासपात्र हिरिय चलिकेनायक की अनमोल सलाह थी। उसके लौट आने तक हमें आगे नहीं बढ़ना चाहिए। इस बीच धारानगर की हालत का पूर्ण विवरण जानकर हमारा गुप्तचर दल खबर दे सकेगा।" बलिपुर से प्राप्त घोड़ा अच्छा होने के कारण हिरिय चलिकेनायक बहुत जल्दी पहुँचा। बड़ी रानी के सुरक्षित स्थान पर सहीसलामत पहुँचने की खबर सुनकर दोनों सन्तुष्ट हुए। अब एरेयंग इस उधेड़बुन से पुक्त हुआ कि चलिकेनायक पर अविश्वास न होने पर भी उनके साथ किसी और का न भेजा जाना शायद अनुचित था, रास्ते में हुई तकलीफ के वक्त या छद्मवेष में होने पर भी किसी को पता चल जाने पर क्या होगा?
हिरिय चलिकेनायक ने यात्रा का विवरण दिया। पहले एल्लम्भ पहाड़ जानेवाले यात्रियों की टोली साथ में रही, वहाँ से बैलहोंगल बाजार जानेवाले व्यापारियों का दल मिला। वहाँ गोकर्ण बनवासी जानेवाले तीर्थयात्रियों का दल मिल गया। फिर आनवट्टी जानेवाले बारातियों का साथ हो गया। आनवट्टी से बलिपुर तक का रास्ता पैदल ही तय किया गया।
एरेयंग प्रभु ने पूछा, "तुम बलिपुर में कितने दिन रहे?" "सिर्फ तीन दिन।" "बड़ी रानीजी को वहाँ ठोक लगा?" "मेरे वापस लौटते समय उन्होंने कहा तो यही था।" "हेग्गड़े और हेग्गड़ती को सारी बातें समझायीं जो मैंने कही थीं?" "सब, अक्षरशः, यद्यपि प्रभ के पत्र ने सब पहले ही समझा दिया था।"
"हाँ, क्योंकि कोई अनिरीक्षित व्यक्ति आए तो पूरी तहकीकात करके ही उन्हें अन्दर प्रवेश करने देना भी एक शिष्टाचार है। फिर उस पत्र में अपने कार्य की पूरी जिम्मेदारी समझा देने के मतलब से सारा ब्यौरा भी दिया गया था।"
"हम लोग वहाँ पहुंचे तब हेग्गड़तीजी अपनी बच्ची के साथ बसदि के लिए निकल रही थीं। परन्तु उनका उस समय का व्यवहार आश्चर्यजनक था। वे बहुत सूक्ष्मग्राही हैं। कोई दूसरा होता तो तुरन्त यह नहीं समझ पाती कि ये ही बड़ी रानी हैं,
और समझ जाने पर तो सहज रीति से आदर-गौरव की भावना दिखाये बिना रह ही नहीं सकती थी।
"यदि वे उस समय हमारे स्वागत में अधिक समय लगाती तो इर्द-गिर्द के लोगों
पट्टमहादेवी शान्तला :: 171