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न भी गाओ तो हर्ज नहीं। तुम अच्छी तरह सीखकर उसमें प्रवीण हो जाओ इतना ही बहुत है।"
"प्रवीण हो जाओ, यह कहने के लिए भी तो एक बार सुन लेना चाहिए न ?" "हाँ ।" उसे हँसी आ गयी। ठीक इसी वक्त रेविमय्या आया, युवरानीजी दोनों को नाश्ते पर बुला रही हैं।
युद्ध - शिविर में मन्त्रणा हुई। जोगम और तिक्पम ने अपराध स्वीकार कर लिया था। जवानी के जोश में वे स्त्रियों के मोह में पड़कर बात को प्रकट कर बैठे थे। यह बात भी प्रकट हो गयी कि इसके लिए वैरी ने स्त्रियों का उपयोग किया था। उन स्त्रियों ने इन लोगों के मन में यह भावना पैदा कर दी थी कि वे युद्ध-शिविर के बाजार में रहनेवाली हैं और चालुक्यों की प्रजा हैं। दोनों को इस बात का पता नहीं लग सका था कि वे चालुक्य राज्य में बसे परमारों के बने कोलियाँ है। नही समझते हे कि ये स्त्रियाँ कर्नाटक की ही हैं और अपनी मातृभाषा की अपेक्षा देशभाषा में ही ज्यादा प्रवीण हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि उन लोगों ने वासना के वश होकर युद्धक्षेत्र का रहस्य खोल दिया था। इसलिए उन दोनों को युद्ध-शिविर से निकालकर युद्ध की समाप्ति तक और उन दो स्त्रियों को भी कड़ी निगरानी में कैद रखने का निश्चय हुआ। उन स्त्रियों के पता लगाने के लिए जरूरी तजवीज भी की जाने लगी। उन स्त्रियों के मिलने पर उन चारों को सन्निधान के सामने प्रस्तुत करने की आज्ञा दी गयी। उन दोनों अश्वनायकों के मातहत सैनिकों पर कड़ी नजर रखने तथा कहीं कोई जरा-सी भी भूलचूक हो तो उसकी खबर तुरन्त पहुँचाने को भी हुक्म दिया गया। जोगम और तिक्कम सैन्य शिविर से दूर, कहाँ ले जाये गये, इसका किसी को भी पता नहीं चला।
इधर शिविर में तहकीकात करने के बाद कुल स्त्रियों में से बड़ी रानी को भी मिलाकर तीन स्त्रियाँ लापता हो गयी हैं - यह समाचार मिला। बड़ी रानीजी के चले जाने की खबर केवल सन्निधान, एरेयंग प्रभु, कुन्दमराय, और हिरिय चलिकेनायक को थी। वे दोनों बड़ी रानीजी की खास सेविकाएँ रही होंगी और कुछ षड्यन्त्र रचकर बड़ी रानीजी को उड़ा ले जाने में सहायक बनी रही होंगी- आदि-आदि बातें शिविर में होने लगीं। लोग इस अफवाह को तरह-तरह का रंग देकर फैलाते रहे; आसमान की ऊँचाई, समुद्र की गहराई और स्त्रियों का मन, जानना दुःसाध्य है, यह उक्ति हर जबान पर श्री । केवल एरेयंग प्रभु और विक्रमादित्य का विचार था वे स्त्रियाँ भेद खुल जाने के
170 :: पट्टमहादेवी कान्तला