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विषय है। छोटे अप्पाजी बिट्रिदेव के शिक्षगंगा हो आने की बात जिस प्रसंग में और जिस ढंग से उठायी गयी उससे ऐसा लगता है कि कुमार बल्लाल के दिल में उनके प्रति बहुत ही बुरी भावना पैदा की गयी हैं। यह सारी कार्रवाई चामव्वा ने ही की है, इसमें कोई सन्देह ही नहीं। अपनी लड़की की शादी के बाद वह इस काम से तटस्थ रह जाएँ तो कोई आपत्ति नहीं लेकिन बाद में और भी जोर से इस तरह की कार्रवाई करने लगी तो भाई भाई एक-दूसरे से दूर होते जाएंगे। तब भविष्य क्या होगा? हे अर्हन, ऐसी स्थिति मत लाना। माँ के लिए सब बच्चे बराबर हैं। उसकी प्रार्थना तो यही होगी कि वे सब आपस में प्रेम-भाव रखें और उनमें एकता हो। युवरानी वहाँ से पूजागृह में गयी और आँख मूंदकर मातृदय की पुकार को भगवान् के सामने निवेदन करने लगी।
उधर, भोजन के वक्त जो वाद-विवाद हुआ था वह चामन्चा तक पहुँच चुका था। यह खबर देनेवाला स्वयं राजकुमार बल्लाल ही था; खबर देकर समझा कि उसने एक बहुत बड़ा काम साध लिया। ऐसा करने का क्या परिणाम होगा, उस पर ध्यान ही न गया। खुद चामव्या ने यह जानना चाहा था कि उसकी बच्चियों के नाच-गान के बारे में युवरानीजी की राय क्या है । बल्लाल ने, इसीलिए, समय पाकर यह प्रसंग छेड़ा था। बीच में इस छोटे अप्पाजी, बालिस्त भर के लड़के को, क्यों बोलना चाहिए था? इसीलिए मैं उस पर झपट पड़ा। वह कहने लगा था कि भावाभिव्यक्ति कम रही। जब खुद माँ ने कहा था कि अच्छा है तब इसकी टांका की जरूरत कसं थी? इससे मैंने तो राय नहीं मांगी थी। इसीलिए उसे मैंने आड़े हाथों लिया। और हेगगड़ती की बेटी, वह तो बहत बकझक करती है। दोनों एक-से झक्को हैं। दोनों की जोडो ठीक हैं। इस छोटे अप्पाजी को कुछ तारतम्य ज्ञान नहीं। सबको छोड़कर उनके साथ शिवगंगा जाना ठीक है? क्या वे हमारी बराबरी के हैं? एक साधारण धर्मदशी किसी मन्दिर का, कहता है कि हेग्गड़े के घरवालों के साथ राजकुमार गांव धूमता है। ये छोटा अप्पाजी अभी भी छोटा ही है। यहाँ आकर राजमहल में रहे तो उसे हम अपनी बराबरी का मानें भी। पर माँ ने जाने की उसे अनुमति क्यों दी ? युवराज ने ही कैसे सम्मति दी? सब अजीब-सा लगता है। जैसा कि चापध्या कहती, इसमें भी कोई रहस्य है। यो चली थी बल्लाल कुमार की विचारधारा। इसी विचारधारा की पृष्ठभूमि में उसने समझा था कि छोटे अप्पाजी जो भी करता है, वह गलत और जो खुद करता है वह सही है। अपने इन विचारों को बताने के लिए जहाँ प्रोत्साहन मिल सकता था वहाँ कहने में यदि संकोच करें, यह हो कैसे सकता है? इस वजह से उसने चामख्या के सामने सारी बातें उगल दी। वह दण्डनायक की पत्नी नहीं, वह तो उसकी भावी सास थी। पर उसे क्या मालूम था कि वह उसके भाई की भी सास बनने की आकांक्षा रखती है? यह सारा वृत्तान्त सुनने के बाद यह भावी सास कहे, "सब ठीक है," यह अपेक्षा
14? :: पपहादेवी शान्तला