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हुआ था। यह प्रसंग आगे कहीं न उधर तो अच्छा हो ।
इस घटना के तीन-चार दिन बाद भोजन करते वक्त बल्लाल कुमार ने पूछा,
"माँ, पद्मला और नामला का नृत्य-गान अच्छा था न ?" अच्छा था. अप्पाजी।" युवरानी ने कहा ।
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"कौन सिखा रहे हैं?" बिट्टिदेव ने पूछा।
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'उत्कल से किसी को बुलवाया है। ' बल्लाल ने कहा ।
" तुम उन्हें जानते हो ?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"हाँ, क्यों ? तुम उन्हें देखना चाहते हो ?" "मुझे क्या काम है ?"
"तो फिर पूछा क्यों ?"
"उन लड़कियों के चेहरे पर जो भाव थे वे निखरे हुए नहीं थे। शिक्षक अभी ठीक कर दें तो अच्छा हो। इस ओर ध्यान देने के लिए उनसे कही।" बिट्टिदेव ने कहा। "तुम चाहते हो तो कह दूँगा। लेकिन भाव ? निखार ? ऐसी कौन सी गलती देखी तुमने ?" कुछ गरम होकर बल्लाल ने पूछा। जिस पद्मला को मैंने चाहा है. उसके नाच के बारे में गलत सलत कहनेवाला यह कौन है? यह, मुझसे चार साल छोटा। इस छीकरे की बात का क्या मूल्य ?
"अप्पाजी, मैंने तो यह बात एक अच्छे उद्देश्य से कही है। आप नहीं चाहते हों तो छोड़ दें। "
"तुम बहुत जानते हो क्या गलती थी ? बताओ तो ? माँ भी थीं। उनकी ही कहने दो।"
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अच्छा छोड़ो। तुम लोग आपस में इसपर क्यों झगड़ते हो ?" युवरानी एचलदेवी ने कहा ।
" शायद उस हेगड़े की लड़की में ज्यादा बुद्धिमान इस दुनिया में कोई दूसरी है ही नहीं, ऐसा इसने समझा होगा। इस वजह से अन्यत्र कहीं कुछ गलती ढूँढ़ता है। " बल्लाल ने कुछ गरम ही होकर कहा ।
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" मैंने किसी का नाम नहीं लिया, अप्पाजी।" विट्टिटेव बड़े शान्तभाव से बोला । 'नाम हो बताना चाहिए क्या ? कहने के ढंग से यह मालूम पड़ता है कि लक्ष्य किस ओर है। बड़े मासूम बनकर उस लड़कों के पीछे बिना किसी को बतायें, सुनते हैं कि शिवगंगा गये "
बात कहीं से कहीं पहुँची थी. यह युवरानीजी को ठीक नहीं लगा, इसलिए उन्होंने कहा, ''इस बात को अब खतम करो। यह बात आगे बढ़ायी तो मैं खाना छोड़कर चली जाऊँगी।"
"मैंने कौन सी गलत बात कही, माँ!" लिनिदेव रुआँसा हो आया।
गहादेवी शान्तला