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मालूम हो गयी है । यह उसी हालत में सम्भव है कि जब लोग ऐसी बातों की जानकारी रखते ही हों। इसलिए ये नायक विश्वास करने योग्य नहीं। इन्हीं लोगों की तरफ से शत्रुओं को यह खबर मिली है कि बड़ी रानीजी युद्ध शिविर में हैं। इसमें सन्देह ही नहीं। इन सब बातों को बाद में उन्हीं के मुंह से निकलवाएँगे। मेरे ये विचार ठीक लगे तो आपके महाराज उनको जो दण्ड देना चाहें, दें। बल्लवेग्गड़ेजी, आप जैसे लोगों को, जो उत्तरदायित्वपूर्ण स्थान पर रहते हैं, केवल निष्ठा रखना काफो नहीं, आप लोगों को अपने मातहत वालों से भी सतर्क रहना चाहिए। अब देखिए, आपकी एक हजार अश्व सेना में दो सौ सैनिक इस तरह के फिजूल साबित हो सकते हैं । अब आइन्दा आपको बहुत होशियार एवं सतर्क रहना चाहिए।"
"जो आज्ञा, प्रभो 1 जिस पत्तल में खाये उसो में छेद करनेवाले नमकहराम कहे जाते हैं।"
___ "मनुष्य लालची होता है। जहां ज्यादा लाभ मिले उधर झुक जाता है। ऐसी स्थिति में निष्टा पीछे रह जाती है। इसलिए जब हम उन लोगों से निष्ठा चाहते हैं,तब हमें भी यह देखना होगा कि वे तृप्त और सन्तुष्ट रहें। उन्हें अपना बनाने की कोशिश करना और उन्हें खुश और सन्तुष्ट रखने के लिए उपयुक्त रीति से बरतना भी जरूरी है। केवल अधिकार और दर्प घ हाकिमाना ढंग दिखाने पर उल्टा असर हो सकता है; इसलिए अपने अधीन रहनेवालों में हैसियत के अनुसार बड़े-छोटे का फरक रहने पर भी, उनसे व्यवहार करते समय इस तारतम्य भाव को प्रकट होने दें तो उसका उल्टा असर पड़ सकता है । यह सब हमने अनुभव से सीखा है। अच्छा अब आप जा सकते हैं। आइन्दा बहुत होशियारी से काम लेना चाहिए।"
"जो आज्ञा।' दोनों को प्रणाम करके बल्लवेगडे चला गया।
"प्रभो ! अन्न द्रोहियों का पता लगने पर भी बड़ी रानीजी का पता लगेगा कैसे?" राविनभट्ट ने पूछा।
"द्रोहियों का पता लगाने के ही लिए यह सब कुछ किया जा रहा है।" "मतलब?" "जो कुछ भी किया गया है, वह सब सन्निधान की स्वीकृति से ही किया गया
"क्या-क्या हुआ है, यह पूछ सकते हैं?" "हम सब सन्निधान के आज्ञाकारी हैं न?" "मुझपर विश्वास नहीं?" "इन सब बातों को उस दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, दण्डनायकजी।"
"सन्निधान की आज्ञा का जितना अर्थ होता है, उससे अधिक कुछ करना गलत होता है।"
154:: पदमहादेत्री शान्तला