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"कहिए।" दोनों ने एक-दूसरे को देखा।
"उसके लिए आगा-पीछा क्यों ? धैर्य के साथ कहिए। कुछ भी हो; तुम लोगों में भी इस बारे में कोई प्रतिक्रिया सहज ही हुई होगी।" बल्लवेग्गड़े ने उन्हें उकसाया।
"और कुछ नहीं । वह कल्पना भी एक पागलपन है। हमारी बड़ी रानीजी को परमारों की तरफ के लोग आकर चोरी से उड़ा ले गये होंगे-ऐसा लगा।" तिक्कम ने कहा।
"मुझे भी ऐसा होना सम्भव-सा लगा। शेष और दो व्यक्यिों ने स्वीकार नहीं किया। इस बारे में कुछ चर्चा हुई। बाद को हमें लगा कि हमारी यह कल्पना गलत है।" जोगम ने कहा।
"ठीक है। तुम लोगों ने अपने मन में जो भाव उत्पन्न हुए वे बताये। अच्छा, चाविमय्या, ये जो कहते हैं, क्या वह ठीक है?" एरेयंग ने पूछा।
चाविमय्या ने कहा, "ठीक है।" "बाकी लोगों में किस-किसने क्या-क्या कहा?"
"कुछ लोगों ने केवल आश्चर्य प्रकट किया। कुछ ने दुःख प्रकट किया। परन्तु अन्यों को यह मालूम ही नहीं था कि युद्ध शिविर में बड़ी रानी जी हैं भी। अनेक को बड़ी रानीजी के गायब होने की खबर मिलने के बाद ही मालूम हुआ कि वे आयी हुई थीं।"
"अच्छा चाविमय्या, तुम जा सकते हो। तुम लोग भी जा सकते हो।" एरेयंग ने साहणीयों से कहा।
वे लोग चले गये। वे लोग शिविर में जब आये थे तब जिन भावनाओं का बोझा साथ लाये थे, वह थोड़ी देर के लिए जरूर भूल-से गये थे। मगर जाते वक्त उससे भी एक भारी बोझ-सा लगने लगा।
"गोंक ! इन दोनों पर और इनके मातहत सैनिकों पर कड़ी नजर रखने और सतर्क रहने के लिए हेग्गड़े सिंगमच्या से कहो।" एरेयंग ने आज्ञा दी। गोंक चला गया।
राविनभट्ट और बल्लवेग्गड़े विचित्र ढंग से देख रहे थे।
"दण्डनायकजी! अब मालूम हुआ? विद्रोह का बीज हमारे ही शिविर में बोया गया है।" एरेयंग ने कहा।
"मुझे स्पष्ट नहीं हुआ।" राविनभट्ट ने कहा।
"बड़ी रानीजी शिविर में हैं, इसका पता ही बहुतों को नहीं। ऐसी हालत में उनके गायब होने की खबर फैलने पर लोगों के मन में यह बात उठी कि उन्हें शत्रु उड़ा ले गये होंगे। जब यह बात उनके मन में उठी तो सहज ही सोचना होगा कि बड़ी रानीजी शिविर में हैं, इतना ही नहीं, उनके शिविर में होने की बात शत्रुओं को भी
पट्टमहादेवी शान्तला :: १६३