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"कहिए महानायकजी ।"
"हमारे सैनिकों की आँखों में धूल झोंककर परमारों की सेना युद्धक्षेत्र से खिसक गयी थी, इसलिए यह सम्भव है कि बड़ी रानीजी ने अपने मायके की तरफ के कुछ सैनिकों से सलाह-मशविरा करके यहाँ शिविर में रहना क्षेमदायक न समझकर मायके जाना सही मानकर, यह खबर लोगों में फैलने के पहले ही बिलकुल गुप्त रूप से जाकर रहना सुरक्षा के ख्याल से उत्तम समझा हो, बल्कि यह काम उन्होंने वहाँ के लोगों की प्ररेणा से ही किया हो।" बल्लवेग्गड़े ने अपना अनुमान व्यक्त किया।
" हो सकता है। फिर भी, इतना तो है ही कि बड़ी रानीजी सन्निधान को भी बताये बिना चली गयी हैं; इस स्थिति में हम यह मानने के लिए तैयार नहीं कि इस तरह जाने में उनकी सम्मति थी।" एरेयंग ने कहा ।
"मुझे कुछ और सूझता नहीं। आपका कथन भी ठीक है।" बल्लवेग्गड़े ने कहा। थोड़ी देर तक कोई कुछ न बोला।
प्रभु एरेयंग ने कहा, "गोंक ! चाविमय्या को बुला लाओ।" गोंक चला गया। दण्डनायक राविनभट्ट ने पूछा, "यह चाविभय्या कौन है ?"
एरेयंग ने कहा, "वह हमारे गुप्तचर दल का नायक है। शायद उसे कोई नयी खबर मिली हो; " फिर नायक की ओर मुखातिब होकर पूछा, "आप कुछ भी नहीं कह रहे हैं: क्या आपको कुछ सूझ नहीं रहा है ?"
"प्रभो!
को और चालुक्य ण्दनाक जैसों को भी
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तुछ नहीं सूझ रहा है तो हम जैसे साधारण व्यक्तियों को क्या सूझेगा ?" तिक्कम ने कहा । 'कभी-कभी अन्त: प्रेरणा से किसी के मुँह से बड़े पते की बात निकल जाती हैं, इसलिए यहाँ व्यक्ति मुख्य नहीं; किस मुँह से कैसा विचार निकलता है, यह मुख्य हैं। इससे यह बात मालूम होते ही आपके भी मन में कुछ विचार, अनुमान, उत्पन्न हुआ होगा, है न?" कुछ छेड़ने के अन्दाज से एरेसंग ने चेतावनी दी।
"हाय, समूचे शिविर में प्रत्येक मुँह से बातें निकलती हैं लेकिन ऐसी बातों से क्या पता लग सकता है।" जोगम ने कहा ।
"
'ऐसी कौन सी बातें आपके कानों में पड़ीं ?" एरेयंग ने पूछा ।
इतने में चाविमय्या आया। झुककर प्रणाम किया और दूर खड़ा हो गया।
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'क्या कोई नयी बात है, चाविमय्या ?"
" कुछ भी मालूम नहीं पड़ा, प्रभो।"
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"इन लोगों को तुम जानते हो ?" एरेयंग ने तिक्कम और जोगम की ओर उँगली से इशारा किया।
"मालूम है ?"
"तुम लोगों को चाविमय्या का परिचय है ?"
पट्टमहादेवी शान्तला : 151