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"मतलब ?"
"जो कुछ भी जिस किसी को कहना हो उसे सन्निधान स्वयं बताएँगे। सब बातें जानने पर भी कहने का अधिकार मुझे या आपको नहीं। इसलिए सन्निधान स्वयं उपयुक्त समय में आपको बता देंगे।"
"अब आगे का काम?" "कल गुप्त मन्त्रणा की सभा होगी। उसमें फैसला करेंगे।"
हेग्गड़ती माचिकब्बे हाथ में पूजा-सामग्री का थाल और फूलों की टोकरी लेकर शान्तला को साथ ले बाहर निकली; दरवाजे के पास पहुँची ही थी कि नौकर लेंक बोला, "कोई इधर आ रहे हैं।'
माचिकब्बे ने अहाते की तरफ देखा। एक छोटी उम्र की स्त्री और अधेड़ उम्र का पुरुष अन्दर आ रहे हैं। बहुत दूर की यात्रा की थी, इससे वे थक मालूम पड़ते थे। उस स्त्री का सिर धूल भरा, बाल अस्त-व्यस्त और चेहरा पसीने से सर था।
माचिकब्बे ने कहा, "लेंक, गालब्बे को बुला ला।" लेंक एकदम भागा अन्दर । माचिकब्वे वहीं खड़ी रही। नवागतों के पास पहुँचने से पहले ही अन्दर से गालब्बे
आ गयी। इतने में शान्तला चार कदम आगे बढ़ी। माचिकब्बे ने इन नवागन्तुकों का स्वागत मुसकुराहट के साथ किया। इर्द-गिर्द नजर दौड़ाकर देखा। कहा, "आइये, आप कौन हैं, यह तो नहीं जानती, फिर भी इतना कह सकती हूँ कि आप लोग बहुत दूर से आये हैं। मैं बसदि में पूजा के लिए निकली हूँ इसलिए. अतिथियों को छोड़कर मालकिन चली गयी, ऐसा मत सोचिए। गालब्बे, इन्हें इनकी सहूलियत के अनुसार सब व्यवस्था करो। हम जल्दी ही लौटेंगी। लौटते ही बात करेंगे। समझी।" गालब्बे को आदेश देकर उसने नवागतों से कहा, "आप नि:संकोच रहिए मैं शीघ्र लौटूंगी। चलो अम्माजी।" और माचिकब्बे शान्तला के साथ चल पड़ी, लेक ने उनका अनुगमन
किया।
नवागतों को साथ लेकर गालब्बे अन्दर गयी। माचिकब्बे द्वारा उनके लिए निर्दिष्ट कमरों में उन्हें ठहराया। उनकी आवश्यकताओं की सारी व्यवस्था की। दोनों यात्रा की थकावट दूर करने के लिए विश्राम करने लगे। थोड़ी ही देर में गालब्बे नवागता के कमरे में आयी और बोली, "पानी गरम है, तैलस्नान करना हो तो मैं आपकी सेवा में हाजिर हूँ।"
"मैं स्वयं नहा लूंगी।"
"तो मैं पानी तैयार रखू ? तैल-स्नान करती हो तो वह भी तैयार रखूगी। आपको एरण्डी का तेल चाहिए या नारियल का?" गालब्बे ने पूछा।
पट्टमहादेवी शान्तला :: 155