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प्रणाम किया था वह रंत्रिमय्या के साथ वहीं से बाहुबली को अपलक देखता खड़ा हो गया जबकि और लोगों को वहाँ कोई विशेष आकर्षण नहीं दिखा।
"स्वामी का दर्शन यहीं से सम्पूर्ण रूप से नहीं होता। और फिर पास जाकर दर्शन कर लेने के बाद यहाँ से देखना और न देखना दोनों बराबर हैं,"बल्लाल ने कहा और विट्टिदेव की ओर देखकर पूछा, "इसमें तुम्हें कौन-सी भव्यता दिखाई पड़ी छोटे अप्पाजी।" बिट्टिदेव को शापर यह सुनाई नहीं पड़ा: बहाथ ऑड़े और आँख बन्द किये खड़ा रहा।
रेषिमय्या कभी बिद्रिदेव की ओर कभी बाहबली की ओर देखता रहा। उसे वह रात फिर याद हो आयी।"उस दिन जो आशीर्वाद दिया था उसे भूलना नहीं, भगवन," कहते हुए उसने बाहुबली को दण्डवत् प्रणाम किया। उसे ध्यान ही न रहा कि उसके चारों ओर लोग भी हैं। उठा तो उसका मुख आनन्द से विभोर था, आँखों में आनन्दाश्रु थे। यहाँ जो लोग थे वे इस रहस्य को समझने में लगे रहे और वह आँसू पोंछकर सिर झुकाये खड़ा हो गया।
चामला और पद्मला को इस दृश्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी। कहीं-कहीं पत्थर पर खुद कइयों के नाम देखे तो दोनों एक शिला पर अपना-अपना नाम खोदने लगी।
एचलदेवी ने रेविमय्या को इशारे से पास बुलाकर कहा,"छोटे अप्पाजी को इस दृश्य में जो भी आकर्षण हो, हम तो निवास पर जाते हैं। तुम उसे साथ लेकर आ जाना।" दूसरे लोगों ने भी उसका अनुसरण किया किन्तु अपना-अपना नाम खोदने में लगी पद्यला और चापला की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। पहाड़ से उतरने के बाद ध्यान आने पर दो नौकर पहाड़ पर भेजे गये।
नाम खोदती-खोदती पद्मला और चामला ने यों ही मुड़कर देखा तो कोई नहीं था। बसदि में भी कोई नहीं दिखाई पड़ा। बाहर बिट्टिदेव और रेविमय्या को देखकर घबराहट कम हुई. यद्यपि इतने में ही वे पसीने से तर हो गयी थीं। वहाँ आयी और पूछा, ''रेविमय्या, वे सत्र कहाँ गये ?"
'चले गये। आप लोग नहीं गयौं ?" "हमें पता ही नहीं लगा।'' "तब आप दोनों कहाँ थी ?" "बसदि के पीछे पत्थर पर अपने नाम खोद रही थीं।" "अब यहीं रहिए, एक साथ चलेंगे।"
बिट्टिदेव को बाहुबली को देखने में ही दत्तचित्त पाकर वे थोड़ी देर तो बैटी किन्तु फिर चामला से न रहा गया, "कितनी देर से देख रहे हो, एक भी दिखाई दी?"
विट्टिदेव ने आँख खोलकर उस तरफ देखा और रेत्रिमय्या से पूछा, "यहाँ ये दो ही हैं, बाकी लोग कहाँ गये?"
पट्टमहादेवी शालना :: 143