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योजना के अनुसार सारा कार्य उसी रात सम्पन्न हो गया।
दूसरे दिन सुबह सारे फौजी शिविरों में सनसनी फैल गयी कि बड़ी रानी चन्दलदेवीजी युद्ध के शिविर में से अचानक अदृश्य हो गयी हैं; कहाँ गर्थी, किसी को मालूम नहीं बोलनेवालों को रोकनेवाला कोई न था, सुननेवालों के कान खुले ही रहे और सारी खबर प्रभु एरेयंग के पास पहुँचती रही।
प्रभु एरेयंग ने चालुक्यों की अश्व सेना के सैनिकों जोगम और तिक्कम को शिविर में बुलवाया। वे क्यों बुलवाये गये, यह उन्हें न तो मालूम हुआ और न जानने की उनकी कोशिश सफल हुई। गोंक जो इन दोनों को बुला लाया था।
प्रभु एरेयंग ने इन दोनों को सिर से पैर तक देखा, भावपूर्ण दृष्टि से नहीं, यों हो। जरा मुसकराये और कहा, "आप लोगों की होशियारी की खबर हमें मिली है।"
वे दोनों सन्तोष व्यक्त करने की भावना से कुछ हैंसे। इस तरह बुलाये जाने पर उनके मन में जो कुतूहल पैदा हुआ था वह दूर हो गया। लम्बी साँस लेकर दोनों ने एक-दूसरे को देखा।
"क्या तुम लोग साधारण सैनिक हो?"
"नहीं, मैं घुड़सवारों का नायक हूँ। मेरे मातहत एक सौ घुड़सवार हैं।" जोगम ने कहा।
"मेरे मातहत भी एक सौ सिपाही हैं।" तिक्कम ने कहा।
"क्या वे सब जो तुम लोगों के मातहत हैं विश्वासपात्र हैं? तुम लोगों के आदेशों का पालन निष्ठा से करते हैं? क्या इनमें ऐस भो लाग हैं जो अडंगा लगाते हैं।"
"नहीं प्रभु, ऐसे लोग उनमें कोई नहीं।" "वे लोग तुम्हारे आदेशों का भूल-चूक के बिना पालन करते हैं?" "इस विषय में सन्देह करने की कोई गुंजायश ही नहीं।" "बहुत अच्छा। तुम लोगों के उच्च अधिकारी कौन हैं ?11
"हम, जैसे दस लोगों पर एक महानायक होता है । उनके मातहत में एक हजार घुड़सवारों की सेना होती है और दस अश्वनायक भी।"
"तुप लोगों ने यह समझा है कि यह बात हमें मालूम नहीं? तुम्हारे ऐसे अधिकारी कौन हैं? इसके बारे में हमने पूछा था।"
"महानायक बल्लवेग्गड़ेजी," जोगम ने कहा। "गोक! उस महानायक को बुला लाओ।"
गोंक झुककर प्रणाम कर चला गया। - "तुम लोगों के मातहत रहनेवाले जैसे तुम्हारे आज्ञाकारी हैं वैसे जिनके अधीन तुम लोग हो उनके प्रति तुम लोग भी निष्ठा के साथ उनकी आज्ञाओं का पालन करते होन?"
पट्टमहादेवो शान्तला :: 147