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" वे सब तभी नीचे चले गये ?"
' और ये ?"
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"ये तुम्हारे साथ के लिए हैं। चामला चहकी
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'क्यों तुम लोग न होर्ती तो क्या मुझे चिड़ियाँ उड़ा ले जाती ?"
" क्या पता ?"
दोनों नौकर अब वहाँ आ चुके थे और सब निवास की ओर चल पड़े।
शिविर के बरामदे में दण्डनायक बैठे कुछ लोगों से बातचीत कर रहे थे। रेविया, बिट्टिदेव, चामला, पाला और दोनों नौकर, सब आये। पद्मला और चामला अन्दर आयीं । मरियाने ने उन्हें देखकर तृप्ति की साँस ली।
दण्डनायक मरियाने के साथ बैठे बात करनेवालों में से एक ने बिट्टिदेव को प्रणाम करके पूछा, "राजकुमार, मुझे भूले नहीं होंगे न?"
"
'आप शिवगंगा के धर्मदर्शी हैं न? सकुशल तो हैं? आपके घर में सब सकुशल हैं ? वहाँ वाले सब अच्छे हैं ?" बिट्टिदेव ने पूछा ।
"सब कुशल हैं। एक वैवाहिक सम्बन्ध पर विचार कर निर्णय लेने को मेरा यहाँ आना एक आकस्मिक घटना है। आप लोगों का दर्शनलाभ मिला, यह अलभ्य लाभ हैं।"
'दण्डनायकजी से बातचीत कर रहे थे। अच्छा। अभी आप यहीं हैं न?" 'कल लाँहूँगा।"
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'अच्छा।" बिट्टिदेव उसे प्रणाम करके अन्दर चला गया। धर्मदर्शी फिर दण्डनायक के पास आकर बैठ गया।
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'कुमार बिट्टिदेव का परिचय आपसे कब हुआ, धर्मदर्शीजी ?"
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'जब वह बलिपुर के हेग्गड़ेजी के साथ शिवगंगा आये थे तब | "
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"क्या कहा ?" दण्डनायक ने कुछ आश्चर्य से पूछा ।
उसने फिर उसी बात को समझाया 1
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'यह बात मुझे मालूम नहीं थी, " कहता हुआ वह मूँछ की नोक काटने लगा । कुछ समय तक सब मौन रहे।
खबर सुनने पर मौन क्यों ?--यह बात धर्मदर्शी की समझ में नहीं आयी। ठीक ही तो है । दण्डनायक के अन्तरंग को समझना उस सरल स्वभाव के धर्मदर्शी के लिए कैसे सम्भव था ?
144 :: पट्टमहादेवी शान्तला