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पौरुष की प्रतीक । मृदु-स्वभाव का कवियों ने जैसा वर्णन किया है, वह सब अपने पर क्यों आरोपित किया जाए ? उस वर्णित मार्दव को दीनभाव से क्यों देखा-समझा जाए ? हमारे इस भव्य राष्ट्र की परम्परा में स्त्री के लिए परमोच्च स्थान है। वाक् शक्ति ने सरस्वती का रूप धारण किया है। अर्थ- शक्ति ने लक्ष्मी का रूप धारण किया है। बाहुबल ने स्वयं-शक्ति का रूप धारण किया । जीवन के लिए आधारभूत शक्ति ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया। पुरुष और प्रकृति के बारे में कल्पना की आँख ने जो भी देखा वह सब भी भव्य स्त्री के रूप में निरूपित किया गया। वास्तव में स्त्री-रूप कल्पना की यह विविधता ही इस राष्ट्र की परम्परा की भव्यता का प्रमाण है।" 'हाँ हाँ, यो प्रशंसा करके ही स्त्रियों को वश में कर पुरुष हम अबलाओं को जाल में फँसा लेते हैं। और फिर 'अबला रक्षक' पद से अलंकृत हो विराजते हैं। इस सबके मूल में पुरुष का स्वार्थ है। इसमें स्त्री होकर कोई भव्यता नहीं देखती हूँ।"
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" देखने की दृष्टि मन्द पड़ गयी है।"
"न, न आचरण की रीति बदल गयी है। वह परम्परागत भव्य कल्पना अब केवल कठपुतली का खेल बन गयी है।"
" इधर-उधर की बातें समाप्त करके, अभी जिस विषय को लेकर विचारविनिमय करने आया उसे बताऊँ या नहीं ?"
“ना कहने का अधिकार ही कहाँ है मुझे ?"
" फिर वही व्यंग्य !"
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'व्यंग्य नहीं; हम याने स्त्रियाँ अपने आपको सम्पूर्ण रूप से समर्पण कर देती हैं। हमारे पास अपना कुछ भी नहीं रह जाता। ऐसी दशा में हमारे हाथ में कोई अधिकार ही नहीं रह जाता। अच्छा, कहिए क्या आज्ञा है ?"
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'मालव के राजा का विक्रमादित्य से वैर पहले से ही है। चालुक्य और परमारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी से यह शत्रुता चली आती रही है। पहले परमार राजा मुंज को हराकर चालुक्य तैलप चक्रवर्ती ने परमारों की सारी विरुदावली को छीन लिया था । अब धारानगरी पर हमला करना है। यदि हम साथ न दें तो उनका दायाँ हाथ ही कट जाएगा। चक्रवर्ती ने यह बात स्पष्ट कहला भेजी है। अब क्या करना चाहिए ?" "विश्वास रखकर सहायता चाहनेवालों के तो आप सदा आश्रयदाता रहे हैं: इस बारे में सोचने-विचारने जैसी कोई बात ही नहीं है।"
" वाह ! आपने अपने घराने के अनुरूप बात कही।"
"किस घराने के ?"
"हेम्माडी अरस के गंगवंशी घराने के, जिसमें तुमने जन्म लिया और वीरगंग पोय्सल घराने के जिसमें तुम पहुँची। इतनी आसानी से स्वीकृति मिल जाएगी - इसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी।"
पट्टमहादेवी शान्तला 121