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बिट्टिदेव ने एक बार रेविमय्या को देखा, फिर माँ की ओर मुख करके बोला, "कोई बाधा नहीं। सचमुच आप ठीक समय पर आयीं।"
'कैसा ठीक समय?"
"मैं रेविमय्या से पूछ रहा था-मेरे शिवगंगा जाने की बात दोरसमुद्र में किसी को विदित न हो, यह गुप्त रखने के लिए आपने कहला भेजा था। मैंने उससे इसका कारण जानना चाहा तो वह कह रहा था कि मैं तो नौकर मात्र हूँ। मुझे जो आदेश होता है उसका निष्ठा के साथ पालन करना मात्र मेरा कर्तव्य है। इतने में..."
"मैं आ गयी। इसीलिए यह ठीक समय हुआ, है न?" "जी हाँ। इसका मतलब क्या है, माँ?"
"अप्पाजी, हम सब पहले मानव हैं। फिर उस मानवत्व के साथ 'पद' भी लग गया। पद की परम्परा रूढ़िगत होकर हमसे चिपक गयी है। मानव होने की हमारी आशा सफल हुई; पर उसके बाद यह पदवी जो लगी उससे अड़चन पैदा होने पर कुछ बातें सब लोगों को मालूम न होना ही अच्छा रहता है। यहाँ भी कुछ ऐसी ही बात थी, इसलिए ऐसा कहला भेजा था।"
"मतलब यह कि कुछ लोगों को यह बात मालूम हो गयौ तो आपकी किसी सहज आशा में अड़चन पैदा हो सकती है-सी शंका आपके मन में आयो होगी। यही न?"
"एक तरह से तुम्हारा कहना भी ठीक है।" "युवरानी होकर भी कुछ लोगों के कारण आपको ऐसा डर?"
"अप्पाजी, अभी तुम छोटे हो। सफेद पानी को भी दूध मान लेना तुम्हारे लिए सहज है। मैं युवरानी हूँ, सच है । परन्तु मानव-सहज कुछ मेरी भी अपेक्षाएं हो सकती हैं। हाल की घटनाओं पर ध्यान देने से लगता है कि हमें भी सावधान रहना होगा। खुद महाराज की अभिलाषाएं उनकी इच्छा के अनुसार फलीभूत हो सकने में भी आशंका हो तो हमारी आकांक्षाओं का क्या हाल होगा?"
"तो महाराज की कोई आशा पूरी नहीं हुई?"
युवरानी चुप रही। कुछ सोचने लगी। रेविमय्या भी सोचने लगा, आखिर बात यहाँ तक आ पहुंची!
__ "यदि न कहने की बात है तो मैं आग्रह नहीं करूंगा, माँ। कल जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तब यदि राजा नहीं होऊँ तब भी अनेक जिम्मेदारियाँ मुझपर पड़ सकती हैं। ऐसी स्थिति में मुझे कैसे बरतना होगा-इसके लिए मुझे शिक्षा देकर उस योग्य बनाना चाहिए। ऐसी विरोधी शक्ति संगठित हो रही है इस राज्य में जो महाराज को भी झुका दे, आपकी बातों से ऐसा ही मालूम पड़ता है।"
"नहीं अप्पाजी, ऐसी कोई विरोधी शक्ति संगठित नहीं हुई है।" "तो फिर?"
पट्टमहादेवी शान्तला :: 111