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"तो क्या हमारी महारानीजी हमारे साथ आयी हैं ? यह खबर भी उन्हें लग गयी
होगी ?"
"लग ही गयी होगी। नहीं तो पहले अनुमान करके फिर गुप्तचरों द्वारा पता लगा लिया होगा। वह न आयी होती तो अच्छा होता। "
" मेरा भी यही मत है। परन्तु उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। कहने लगीं, 'यह गुः मेरे ही लिए तो हो रहा है। मैं खुद उसे अपनी आँखों देखना चाहती हूँ।' यह कहकर हठ करने लगीं। हमने तब यह सलाह दी कि हमारे साथ न आएँ । चाहें तो बाद में वृद्ध व्यावहारिकों के साथ भेष बदलकर आ जाएँ। वास्तव में हमारे बहुत-से लोगों को भी यह बात मालूम नहीं। फिर उनको आये अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, इसलिए आपकी यह खबर हमारे लिए बड़ी ही आश्चर्यजनक है।"
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'आश्चर्य की बात नहीं! अपने ही व्यक्तियों द्वारा यह खबर फैली है।" "ऐसे लोग हममें हों तो यह तो हानिकर है न? तुरन्त उनका पता लगाना चाहिए।"
थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गयी। एरेयंग कुछ देर तक बैठे सोचते रहे। इस बात को जानते हुए भी कि वहाँ कोई दूसरा नहीं और केवल वे दो ही हैं, एरेयंग प्रभु ने विक्रमादित्य के कान में कहा, " आज ही रात को बड़ी रानीजी को वेश बदलकर एक विश्वस्त व्यक्ति के साथ कल्याण या करहाट भेज देना चाहिए और सुबह-सुबह यह खबर फैला देनी चाहिए कि बड़ी रानीजी नहीं हैं, पता नहीं रातों-रात क्या हुआ। तब उन द्रोहियों के पता लगाने में हमें सुविधा हो जाएगी!"
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'यह कैसे सम्भव होगा ?"
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'आप हमपर विश्वास करें तो हम यह काम करेंगे। द्रोहियों का पता लगाकर उन्हें सूली पर चढ़ा देंगे। आगे के कार्यक्रम पर बाद में विचार करेंगे।" एरेयंग ने कहा। 'एरेयंग प्रभु, चालुक्य-सिंहासन को हमें प्राप्त कराने में आपने जो सहायता की थी, उसे हम भूल नहीं सकते। इसीलिए हमने आपको अपना दायाँ हाथ मान लिया हैं। राष्ट्र का गौरव और हमारी जीत अब आप ही पर अवलम्बित है। आप जैसा चाहें, करें। इस युद्ध के महा-दण्डनायक आप ही हैं। आज से हम और शेष सब, आप जो कहेंगे उसी के अनुसार चलेंगे। ठीक है न ?"
"
'आप यदि इतना विश्वास हम पर रखते हैं तो यह हमारा सौभाग्य है। " 'एरेयंग प्रभु, यदि यह हमारी जीत होगी तो हम अपनी विरुदावली में से एक आपको दे देंगे।"
"विरुद प्राप्त करने की लालच से जीत हमारी नहीं होगी। एक मात्र राष्ट्र प्रेम और निष्ठा से जीत सम्भव है। हम इस लालच में पड़नेवाले नहीं।"
"हम याने कौन-कौन ?"
पडुमहादेवी शान्तता 35