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"मों से पूछंगा।" "कहें तो मैं ही पूछ लूँगी!" "वहीं कीजिए।" कहकर वह वहीं से चला गया।
वह जिधर से गया, चामरमानी तरफ कुरा ते वी रही विद गर चहार, झटके से सिर हिलाकर वहाँ से चली गयी।
उस दिन रात को मरियाने दण्डनायक के कान गरम किये गये। चामब्वे को योजना का कुछ तो कारगर हो जाने का भरोसा था । बल्लाल कुमार के मन को उसने जीत लिया था। अपनी माँ से दूर रहने पर भी मौ से जितना वात्सल्य प्राप्त हो सकता था उससे अधिक वात्सल्य चामव्वा से ठसे मिल रहा था। सोसेफर में माँ का वह वात्सल्य तीन धाराओं में बहता था। यहाँ सब सरह का वात्सल्य, प्रेम, आदर एक साथ सब उसी की ओर बह रहा है। उसके मन में यह बात बैठ गयो कि मरियाने दण्डनायक, उनकी पत्नी और उनकी बेटियाँ पद्यला, चामला-सब-के-सब कितना प्रेम करते हैं उसे ! कितना आदर देते हैं, कितना वात्सल्य दिखाते हैं ! परन्तु अभी यौवन की देहरी पर खड़े बल्लाल कुमार को यह समझने का अवसर ही नहीं मिला था कि इस सबका कारण उनका स्वार्थ है। यह बात समझे बिना ही महीनों गुजर गये। फलस्वरूप चामब्वे के मन में यह भावना घर कर गयी थी कि यह बड़ा राजकुमार उसका दामाद बन जाएगा
और बड़ी बेटी पद्मला रानी बनकर पोयसलों के राजघराने को उजागर करेगी। लेकिन इतने से ही चापव्वा तृप्त नहीं थी। क्या करेंगी? उसको योजना हो बहुत बड़ी थी। उसे कार्यान्वित करने की और उसकी दृष्टि थी। इसीलिए युवरानी, छोटे अप्पाजी और उदयादित्य को उसने दोरसमुद्र बुलवा लिया।
प्रथम भेंट में ही उसे मालूम हो गया था कि युवरानी भीतर-ही-भीतर कुछ रुष्ट हैं। इस बात का उसे अनुभव हो चुका था कि पहले युवरानी के बच्चों को अपनी ओर आसानी से आकर्षित किया जा सकता है। यह पहला काम है। बच्चों को अपनी ओर कर लेने के बाद युवरानी को ठीक किया जा सकता है। बड़ा राजकुमार ही जब वश में हो गया है तो ये छोटे तो क्या चीज हैं ? परन्तु राजकुमार विट्टिदेव के साथ जो थोड़ीसी बातचीत हुई थी उससे उसने समझ लिया था बड़े राजकुमार बल्लाल और छोटे विट्टिदेव के स्वभाव में बड़ा अन्तर है। बिट्टिदेव को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कोई नया तरीका ही निकालना होगा।
इसी वजह से उसे अपने पतिदेव के कान गरम करने पड़े थे। उसी रात उसने नयी तरकीब सोची भी। फलस्वरूप दण्डनायक के परिवारवालों के साथ, प्रधानजी की पलियौं-नागलदेवी, लक्ष्मीदेवी, उनके बच्चे बोप्पदेव और एचम-इन सबको लेकर
1410: पट्टमहादेवी शान्तला