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"मानव का मन आम तौर पर दुर्बल है। नियम और संयम से उसे अपने अधीन रखना होता है। स्वार्थ हो जाकर अन्य विषयों की ओर से अन्धा हो जाता है। बहुमत के सहयोग और निष्ठा से ही राजाओं के अस्तित्व का मूल्य होता है।"
"तो क्या राजा को ऐसे लोगों के स्वार्थ के वशीभूत होना चाहिए? क्या इसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता ?"
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'सब कुछ मानवीय पहलू से देखना होता है, अप्याजी स्वार्थ भी मानव का एक सहज गुण है। एक हद तक वह क्षम्य होता है। पर यदि वही स्वार्थ राष्ट्रहित में बाधक बने तो उसे खतम ही करना होगा। *"
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“राष्ट्रसेवक स्वार्थवश यदि कभी ऐसा बने तो राजा को भी झुकना होगा ?" "झुकने के माने यही नहीं, उसे क्षमा का एक दूसरा रूप माना जा सकता है।' "माँ, क्षमा यदि अति उदार हो जाय तो दण्डनीय गलतियाँ भी उस उदारता में अनदेखी हो जाती हैं। न्याय के पक्षपाती राजाओं को इस विषय में बहुत जागरूक रहना चाहिए | उदार हृदय होना राजाओं के लिए एक बहुत ही श्रेष्ठ गुण है। फिर भी उसका दुरुपयोग न हो, ऐसी बुद्धिमत्ता तो होनी ही चाहिए— गुरुवर्य ने मुझसे यह बताया है।' 'औदार्य, दया, क्षमा – ये तीनों राजाओं के श्रेष्ठ गुण हैं, अप्पाजी। जैसा तुमने कहा, इनका दुरुपयोग नहीं होने देना चाहिए। इस विषय में सतर्क रहना आवश्यक होता हैं। अतएव..." युवरानी कहते-कहते रुक गयी। और फिर जाने को उद्यत हो गयी । " क्यों माँ, बात अधूरी ही छोड़ दी ?" कहते हुए बिट्टिदेव भी उठ खड़ा हुआ । "घण्टी की आवाज नहीं सुनी, अप्याजी ? प्रभुजी पधार रहे हैं।"
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रेशम का परदा हटा। युवराज एरेयंग प्रभु अन्दर आये। रेविभय्या बाहर चला गया। युवराज के बैठ जाने पर युवरानी और बिट्टिदेव दोनों बैठ गये।
" क्यों अप्पाजी, आज गुरुजी नहीं आये ?" युवराज ने पूछा।
बिट्टिदेव उठ खड़ा हुआ। "नहीं, आज अध्ययन का दिन नहीं हैं।" फिर माँ की तरफ मुड़कर कहने लगा, "मौं, यह घुड़सवारी का समय है, जाऊँगा ।" कहकर वहाँ से निकल गया ।
अन्दर युवराज और युवरानी दो ही रहे। कुछ देर तक मौन छाया रहा। फिर युवराज एरेयंग ने ही बात छेड़ी, "चालुक्यराज त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य की ओर से एक बहुत ही गुप्त पत्र आया है। क्या करना चाहिए – इस सम्बन्ध में मन्त्री और दण्डनायक से सलाह करने से पहले अन्तःपुर का मत जानने के लिए यहाँ आया हूँ।" "हम स्त्रियाँ भला क्या समझें? जैसा आप पुरुष लोग कहते हैं, हम तो बस स्त्री
ही हैं।"
" स्त्री, स्त्री होकर रह सकती है। और चाहे तो मर्दाना स्त्री भी हो सकती है,
120 :: पट्टमहादेवी शान्तला
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