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के लिए तैयार खड़े विराट रूप बाहुबलि स्वामी के प्रभावलय से राजित विशाल मुखमण्डल का स्मरण करते हुए आरोहण करनेवालों को थकावट कहाँ?
बाहुबलि की परिक्रमा कर उनके चरणारविन्द में साष्टांग प्रणाम समर्पित किया। इस विराट् मूर्ति को चामुण्डराय द्वारा निर्मित कराये एक सदी बीत चुकी थी। इस मूर्ति ने इस अवधि में उतने ही ग्रीष्म बिताये, फिर भी ऐसा लग रहा था कि मानो अभी हाल ही में प्रतिष्ठित हुई है, उसकी चमक में किंचिन्मात्र भी कमी नहीं हुई है। मूर्ति के चरणों के अंगूठे देखते हुए वे दोनों छोटे बच्चे हाथ जोड़े खड़े-खड़े सोचते रहे कि वह अंगठा उनके शरीर का कितना अंश है, इस परिमाण के अनुसार मूर्ति की ऊँचाई कितनी होगी। उस ऊँचाई तक पहुँचकर उस मुस्कुराहट से युक्त सुन्दर मुखड़ा देखकर उसकी मुस्कुराहट के आनन्द का अनुभव कर सकेंगे? आदि-आदि ये बच्चे सोचते रहे होंगे। बहुत समय तक हाथ जोड़े खड़े रहकर पीछे की ओर खिसकते-खिसकते कुछ दूर जाकर मूर्ति के पैरों से मस्तक तक नजर दौड़ायो। हाँ, यह तो नग्न मूर्ति है। फिर भी असह्य भावना नहीं आयी, एकटक देखते ही रहे।
बड़े बुजुर्ग इन बच्चों को देखते हुए दूर बैठे रहे। शान्तला ने हाथ जोड़े, आँखें बन्द कौं। गाने लगी..
"गोम्मट जिननं नरनागामर दितिज खचरपति पूजितनं । __ योगाग्नि हत स्मरनं योगिध्येयननमेयनं स्तुतियिसुवें॥"
इस पद को भूपाली राग में गाया, भगवान् की स्तुति की। बैठे हुए सब उठ खड़े हुए और हाथ जोड़कर प्रणाम किया। बिट्टिदेव भी हाथ जोड़े आँख मूंदे रहा। श्रुतिबद्ध
और स्वरयुक्त मुक्त कण्ठ से शान्तला ने गाना गाया; उस गान-लहरी से दसों दिशाएँ गूंज उठीं। गिरि-शिखर पर भक्ति-परवश हो तादातम्य भाव से गाये उस गान ने, उस स्तुति ने, मानो भगवान् के हृदय में एक अनुकम्प उत्पन्न कर दिया हो, ऐसा भान हो रहा था। वास्तव में वहाँ जितने जन उपस्थित थे, वे सभी एक अनिर्वचनीय आनन्द से पुलकित हो रहे थे।
बाहुबलि के चरणपूजक पुजारी ने स्तोत्र-पाठ के बाद शान्तला के पास आकर कहा, "संगीत शारदा ने तुम पर प्रसन्न होकर पूर्ण अनुग्रह किया है, अम्माजी; आज तुमने बाहुबलि के हृदय को जीत लिया है।" फिर उन्होंने उस बच्ची के सिर पर आशीर्वादपूर्ण हाथ रखते हुए उसके माता-पिता हेगड़े दम्पती की ओर मुड़कर कहा, "आपके और आपके पूर्वजों के पुण्य प्रभाव के कारण यह अम्माजी आपकी बेटी होकर जन्मी है। देश-विदेशों से अनेक प्रख्यात गायक आये, उन्होंने स्वामी बाहुबलि को सन्तुष्ट करने के अनेक प्रयत्न किये। अपनी विद्या-प्रौढिमा का प्रदर्शन भी किया। लोगों के प्रशंसा-पात्र भी बने। मैंने भी बहुतों के स्तुतिपरक गायन सुने हैं और आनन्द भी पाया। मगर इस अप्पाजी के स्वर-माधुर्य में एक दैवी शक्ति है जो अन्यत्र दुर्लभ
पट्टमहादेवी शान्तला :: 73