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शान्तला के मन में यह भावना बनी रही कि माँ को क्षेत्र-दर्शन का वह भाग्य नहीं मिल सका। इसलिए उसने माँ से कहा, "माँ, आप भी इस नन्दी की परिक्रमा करती तो क्षेत्रदर्शन के पुण्य को प्राप्त कर सकती थीं।"
"वह तो बेलुगोल में ही मिल चुका है।" माचिकब्बे ने कहा। " भी हि अाहा :"ात ने फिर सवाल किया।
"उसकी तरफ से उसके लिए मैं ही एक बार और परिक्रमा कर आऊंगा।" कहते हुए मारसिंगय्या किसी की सम्मति की प्रतीक्षा किये बिना ही चले गये और एक परिक्रमा के बाद लौटकर बेटी के पास खड़े हो गये और बोले, "अम्माजी, अब तो समाधान हुआ न? तुम्हारी मौं को भी उतना ही पुण्य मिला जितना हमें।"
"सो कैसे अप्पाजी, आपने जो पुण्य अर्जन किया वह आपका। वह बाँरकर अम्मा को कैसे मिलेगा?" शान्तला ने पूछा।।
"पाप का फल बँटता नहीं, अम्माजी। वह अर्जित स्वत्व है। परन्तु पुण्य ऐसा नहीं, वह पति-पत्नी में बराबर बँट जाता है। यह हमारा विश्वास है।"
"माँ को यहाँ पुण्यार्जन जब नहीं चाहिए तब उसे अर्जित करके देने की आपको क्या आवश्यकता है?" शान्तला ने प्रश्न किया।
''यही तो दाम्पत्य जीवन का रहस्य है । जो माँगा जाय उसे प्राप्त करा दें तो वह सुख देता है। परन्तु बांछा को समझ, माँगने से पूर्व ही यदि प्राप्त करा दिया जाय तो उससे सुख-सन्तोष अधिक मिलेगा। यही तो है एक-दूसरे को समझना और परस्पर अटल विश्वास ।'
।"पुरुष और स्त्री दोनों जब पृथक्-पृथक हैं सब एक-दूजे को सम्पूर्ण रूप से समझना कसे सम्भव है? अनेक विचार अन्तरंग में ही, एक-दूसरे की समझ पें आकर, टकराकर रह जाते हैं।"
"जब तक पृथक्त्व की भावना बनी रहेगी तब तक यही हाल रहता है। अलगअलग होने पर भी पुरुष और स्त्री एक हैं, अभिन्न हैं, एक-दूसरे के पूरक हैं। अर्धनारीश्वर की यही मधुर कल्पना है। शरीर का आधा हिस्सा पुरुष और शेष आधा स्त्री रूप होता है। ये जब एक भाव में संयुक्त हो जाएँ तो अभिन्न होकर दिखते हैं। यही अर्धनारीश्वरत्व का प्रतीक दाम्पत्य है। इसी में जीवन का सार है । क्यों कविजी, मेरा कथन ठीक है न?" |
"सभी दम्पतियों को ऐसा अभिन्न भाव प्राप्त करना सम्भव है. हेग्गड़ेजी ?"
"प्रयत्न करने पर ही तो दाम्पत्य सुख मिलता है। पृथक्-पृथक् का, एक बनना ही तो दाम्पत्य है। पृथक् पृथक् ही रह गया तो उसे दाम्पत्य कहना हो नहीं चाहिए, उसे स्त्री-पुरुष का समागम कह सकते हैं।"
"यह बहुत बड़ा आदर्श है । परन्तु ऐसी मानसिकता अभी संसार को नहीं हुई है।"
1940 :: पट्टयहादेवी शान्तला