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"आज नहीं, अम्माजी। भाग्य की बात है कि कल ही शिवरात्रि है। यहाँ रहेंगे ही। फिर अमावस्या है, उस दिन प्रस्थान नहीं । तात्पर्य यह कि अभी तीन-चार दिन यहाँ रहेंगे ही। और एक बार हो आएंगे।"
सब उतर आये। इस बीच रेविमय्या भी आ पहुंचा था। सबको आश्चर्य हुआ।
मारसिंगय्या ने पूछा, 'रेविमय्या, यह क्या, बिना विश्राम किये ही चले आये? राजकुमार की रक्षा क्या हमसे नहीं हो सकेगी, इसलिए इतनी जल्दी लौट आये?"
"राजकुमार और अम्माजी को सदा देखता ही रहूँ, यही मेरी आशा-आकांक्षा है हेगड़ेजी। मेरी इस अभिलाषा का पोषण कौन करेगा? और फिर इन दोनों को देखते रहने का जो मौका अब मिला है, इसका भरपूर उपयोग करने की मेरी अपनी आकांक्षा थी, इसी कारण भाग आया। आप लोगों के पहाड़ पर चढ़ने से पहले ही आना चाहता था। पर न हो सका। वह मौका चूक गया।' रेविमय्या ने कहा।
"कुछ भी नहीं चूका । यहाँ तीन-चार दिन रहना तो है ही। यहाँ दूसस क्या काम है। पहाड़ पर चढ़ आएंगे एक और बार।" मारसिंगय्या ने कहा।
"युवराज और युवरानी ने तो कोई आपत्ति नहीं की रेविमय्या?" माचिकब्बे ने पा।
"सजकुमार को अभी यहाँ से आप लोग बलिपुर ले जाएंगे तो भी वे आपत्ति नहीं करेंगे।"
तुरन्त शान्तला बोली, "वैसा ही करेंगे।" बिट्टिदेव ने उत्साह से उसकी ओर देखा।
"परन्तु अब की बार ऐसा कर नहीं सकेंगे। शिवगंगा से राजकुमार को मुझे सीधा सोसेऊरु ले जाना है। अब आपके साथ इधर आने में उनको कोई आपत्ति नहीं होगी।"
"रेविषघ्या, यह क्या ऐसी बातें कर रहे हो? अभी हमारे साथ आये तो आपत्ति नहीं की और अब यहाँ से बलिपुर ले जाएँ तो आपत्ति नहीं करेंगे। दोनों बातें कहते हो। उसी मुंह से यह भी कहते हो कि अब ऐसा नहीं हो सकता। कथन और क्रिया में इतना अन्तर क्यों?" शान्तला ने सीधा सवाल किया।
"अम्माजी, आपका कहना सच हैं। कथन और क्रिया दोनों अलग-अलग हैं। कुछ प्रसंगों के कारण ऐसा हुआ है । राजकुमार आप लोगों के साथ कहीं भी जाएँ, उन्हें कोई आक्षेप नहीं। परन्तु अभी कुछ राजनीतिक कारणों से राजकुमार को सोसेकरु लौटना ही होगा। और हाँ, राजकुमार के आप लोगों के साथ यहाँ आने की खबर तक दोरसमुद्रवालों को मालूम नहीं होनी चाहिए।" रेलिमय्या ने कहा।
बात को बढ़ने न देने के इरादे से मारसिंगय्या बोले, "प्रभु संयमी हैं, बहुत दूर की सोचते हैं। उनके इस आदेश के पीछे कोई विशेष कारण ही होगा; इसलिए
42 :: पट्टमहादेवी शान्तला