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आदेशानुसार वही करो। "
"ठीक है, हेग्गड़ेजी। पता नहीं क्यों अब की बार दोरसमुद्र से लौटने के बाद प्रभुजी स्फूर्तिहीन से हो गये हैं। इसका रहस्य मालूम नहीं हुआ।" रेविमय्या ने कहा। "तुम्हारा स्नान आदि हुआ ?"
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'नहीं, अभी आधा घण्टा ही तो हुआ है।"
" जल्दी जाकर नहा आओ। भोजन आदि की तैयारी कराकर प्रतीक्षा करेंगे।" कहकर मारसिंगय्या अन्दर चले गये। साथ ही और सब लोग चले गये।
शिवभक्त मारसिंगय्या, शिवभक्त शिल्पी गंगाचारी, और उनके साथ के जिनभक्तों के दल ने शिवरात्रि के शुभ पर्व पर निर्जल उपवास कर जागरण किया, गंगा-धरेश्वर के मन्दिर में चारों प्रहरों की पूजा-अर्चा में शामिल हुए। उस दिन प्रातः काल रेविमय्या, शान्तला, बिट्टिदेव और बोकिमय्या ने पर्वतारोहण किया, और उस चोटी पर चढ़कर नन्दी को परिक्रमा को। नन्दों के सोगों के बीच से नवंत शिखर को देखा। शान्तला और बिट्टदेव को सींगों तक पहुँच पाना न हो सकने के कारण रेविमय्या ने उन दोनों को उठाकर उनकी मदद की।
चारों प्रहर की पूजा के अवसर पर शान्तला की नृत्य-गान सेवा शिवार्पित हुई । नृत्य सिखानेवाले गंगाचारी बहुत प्रसन्न हुए। अपनी शिष्या को जो नृत्य सिखाया था वह नादब्रह्म नटराज को समर्पण करने से अधिक सन्तोष की बात और क्या हो सकती है ? गंगाचारी ने कहा, "अम्माजी, ज्ञानाधिदेवी शारदा तुम पर प्रसन्न हैं। तुम्हारे इष्टदेव बाहुबलि भी प्रसन्न हैं। और अब यह नादब्रह्म नटराज भी तुम पर प्रसन्न हो गये। शिवगंगा में प्रादुर्भूत शुद्ध निर्मल अन्तरगंगा की तरह तुम्हारी निर्मल आत्मा की अधिकाधिक प्रगति के लिए एक सुदृढ़ नींव बन गयी है न कविजी ?" गंगाचारी ने
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'कहा।
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'हाँ आचार्य, इस बार की यात्रा के लिए प्रस्थान एक बहुत अच्छे मुहूर्त में हुआ हैं। इस सबका कारण यह रेविमय्या है।" बोकिमय्या ने कहा ।
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'मेँ एक साधारण सेवक, बलिपुर भेजना मेरा अहोभाग्य था। मेरे मन में ही सड़े पुराने दुःख को बहाकर उसके स्थान पर पवित्र और नयी प्रेमवाहिनी बहाने में यह सब सहायक हुआ। यह किसी जन्म के पुण्य का फल है। भिन्न-भिन्न स्तरों के अनेक लोगों को इस प्रेम - सूत्र ने एक ही लड़ी में पिरो रखा है। राजमहल के दौवारिक मुझ जैसे छोटे साधारण सेवक से लेकर हम सबसे ऊपरी स्तर पर रहनेवाले प्रभु तक सभी वर्गों के लोग इस प्रेम - सूत्र में एक हो चुके हैं। क्या यह महान् सौभाग्य की बात नहीं ? परन्तु अब शीघ्र हो अलग-अलग हो जाने का समय आ गया लगता हैं, इससे मैं बहुत
पट्टमहादेवी शान्तला