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आया। गि.ह., "हाँपिया , आंव। मुझं इसका ध्यान नहीं रहा। मैंने माँ के चेहरे पर कभी किसी तरह की चिन्ता की रेखा तक नहीं देखी, पर अब उन्हें चिन्तित देखकर मैं बहुत परेशान हो गया हूँ। यह मुझसे सहा नहीं गया, इससे पूछा।"
"यहाँ कोई नहीं है, ठीक है। फिर भी हमें चौकन्ना रहना चाहिए, अप्पाजी। सुना है कि दीवारों के भी कान होते हैं। वैसे ही इन पेड़-पौधों के पत्तों के भी कान हो सकते हैं। इसलिए यहाँ इन विषयों पर बातें नहीं करनी चाहिए।" रेविमय्या ने
कहा।
"मतलब कि तुम्हें सब बातें मालूम हैं ?"
"सब कुछ सभी को मालूम नहीं होता। राजमहल में बहुत-सी बातों को देखकर वातावरण को परखकर समझना पड़ता है। अन्तरंग सेवक होने के कारण वह एक तरह से हमारी समझ में आ तो जाती हैं। यह अनुभव से प्राप्त वरदान भी हो सकता है और एक अभिशाप भी।" रेविमय्या ने कहा।
"वरदान शाप कैसे हो सकता है, रेविमय्या?" "अप्पाजी, आपको इतिहास भी पढ़ाया गया है न?" "हाँ, पढ़ाया है।"
"अनेक राज्यों के पतन और नये राज्यों के जन्म के विषय में आपको जानकारी है न? इसका क्या कारण है?"
."स्वार्थ ! केवल स्वार्थ।"
"केवल इतना ही नहीं, छोटे अप्पाजी विश्वासद्रोह। अगर मुझ जैसे विश्वासपात्र व्यक्ति द्रोह कर बैठे तो वह शाप न होगा? समझ लो कि मैं सारा रहस्य जानता हूँ और यदि मैं उस रहस्यमय विषय को अपने स्वार्थ-साधन के लिए उपयोग करूं या उपयोग करने का प्रयत्न करूँ तो यह द्रोह की ओर मेरा प्रथम चरण होगा। है न? प्रभु से सम्बन्धित किसी भी बात को उनकी अनुमति के बिना हमें प्रकर नहीं करना चाहिए।"
__ "मतलब है कि यदि मुझसे कहें तब भी यह द्रोह होगा, रेविमय्या? मैं तुम्हारे प्रभु का पुत्र और उनके सुख-दुःखों में सहभागी हूँ।"
"पिता पर बेटे ने, भाई पर भाई ने विद्रोह किया है, इसके कितने ही उदाहरण मिलते हैं, अप्पाजी। है न? आपके विषय में मुझे ऐसा सोचना नहीं चाहिए। मैंने केवल बात बतायी। क्योंकि बड़े होने पर कल आप पर कैसी-कैसी जिम्मेदारियां आ पड़ेंगी, ईश्वर ही जाने ! खासकर तब जब बड़े अप्पाजी का स्वास्थ्य सदा ही चिन्ताजनक रहा करता है तो वह जिम्मेदारी ज्यादा महान् होगी।" रेविमय्या ने कहा।
"माँ ने कई बार इस बारे में कहा है। मैंने माँ की कसम खाकर यह वचन दिया है कि भैया की रक्षा में मेरा समग्र जीवन धरोहर है।" बिट्टिदेव ने कहा।
पट्टमहादेवी शान्तला :: 19