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बल्लाल का मन हमारी बेटी से लगा हुआ है। लेकिन उनके मन के इस रुझान को भी अंकुश लग सकता है। इसलिए आप कुछ भी सही, अब ऐसा करें कि कुमार यहीं ठहरें। उन्हें अपने माँ-बाप के साथ सोसेऊरु जाने न दें। यदि वहाँ चले गये तो हमारा काम ही ठप हो जाएगा।"
मरियाने दण्डनायक ने यह सब सोचा न था । उसने केवल इतना ही समझा था कि छोटी उम्र की बच्ची शान्तला की बुद्धिमानी उसका कार्य कौशल्य आदि से युवरानी प्रभावित हुई हैं और इसी वजह से वे उसपर सन्तुष्ट हैं। यह तो केवल युवरानी की सहज उदारता मान रहा था। परन्तु युवरानी की प्रसन्नता पीछे चलकर यों रिश्तेदारी में परिणत होगी, इसका उसे भान नहीं था । चामव्या की बातों में कुछ तथ्य का भान होने लगा । सम्भवतः युवरानी की प्रसन्नता ऐसे सम्बन्ध की नान्दी हो सकती है, यह उसकी समझ में नहीं आया। स्त्री की चाल स्त्री ही जाने। इस हालत में यह नहीं हो सकता था कि कुछ दिनों तक और वे चुप बैठे रहें ।
यो मन में एक निश्चय की भावना के आते ही उस दिन दोपहर के समय महाराज के साथ जो उसकी बातचीत हुई थी उसका सारा वृत्तान्त उसने पत्नी को बताया। परियाने से सारी बातें सुन चामव्या अप्रतिभ-सी हो गयी।
"तो महाराज अब भी आपके बाल्यकाल की उस स्थिति गति का स्मरण रखते हैं। आपके वर्तमान पद के अनुरूप आपके प्रति गौरव की भावना नहीं रखते ?"
"गौरव की भावना है, इसमें कोई शक नहीं। परन्तु उनका मत है कि हमारी हैसियत कितनी भी बढ़े, हमें अपनी पूर्वस्थिति को नहीं भूलना चाहिए। "
" तो मतलब यह कि हमारे मन की अभिलाषाएँ उन्हें स्वीकार्य नहीं हो सकेंगी। हमारी बच्चियों को युवराज के बच्चों के लिए स्वीकृत करने पर उन्हें एतराज होगा।" "वैसे सोचने की जरूरत नहीं। हमारे बच्चों को भी स्वीकार कर सकेंगे, वैसे ही गड़ती की बच्ची को भी स्वीकार कर सकेंगे।"
"हमें अपने कार्य को शीघ्र साध लेना चाहिए। भाग्यवश हमारी पद्मला विवाहयोग्य तो हो ही गयी है। एक-दो साल में विवाह करवा देना चाहिए। तब तक कुमार बल्लाल को यहीं रोक रखना चाहिए; उन्हें अपने माँ-बाप के पास रहने न दें, ऐसी व्यवस्था करनी होगी ।"
" बेहतर हैं कि अब तुम अपनी सारी आशा-आकांक्षाओं को भूल जाओ। मेरी लड़की की किस्मत में रानी होना न लिखा हो तो वह रानी नहीं बन सकेगी। रानी बनना उसके भाग्य में बदा हो तो कोई रोक नहीं सकेगा। इन बातों को लेकर माथापच्ची करना इस प्रसंग में ठीक नहीं।"
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'ऐसा प्रसंग ही क्या है ?"
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'महाराज राजकाज से निवृत्त होना चाहते हैं। युवराज को राजगद्दी पर बिठाने
104 :: पट्टमहादेवी शान्तला