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"रक्षक दल से किसी एक आदमी द्वारा चिट्ठी लिख भेजी जाए। वह उसे पहुँचाकर सीधा शिवगंगा को ही पहुँच जाएगा।'' बिट्टिदेव ने कहा।
मारसिंगय्या ने रेविमय्या की ओर देखा।
परिस्थिति को समझकर उसने कहा, "हेगड़ेजी, अप चिन्ता न करें। मैं खुद हो आऊँगा। युवरानी जी से कहकर उनसे पहले स्वीकृति पा लें तो बाद को कोई अड़चन नहीं रहेगी।" रेत्रिमय्या के इस कथन में मारसिंगय्या और बिट्टिदेव की सहायता मात्र की नहीं, शान्तला की सलाह की मान्यता भी थी। अब यात्रा का मार्ग बदल दिया गया। रेविमय्या सोसेकर की तरफ रवाना हुआ। इन लोगों ने शिवगंगा की ओर प्रस्थान किया।
हिरेसावे, यडियूरु, सोलुरु होते हुए वे शिवगंगा जा पहुंचे। चारों दिशाओं से चार अलग-अलग रूपों में दिखनेवाले शिवगंगा के इस पहाड़ को देखकर बिट्टिदेव और शान्तला सोचने लगे कि इसे किसी शिल्पी ने गढ़ा होगा। इन्द्रगिरि चट्टान में बाहुबलि के रूप को गढ़नेवाले उस शिल्पी ने यहाँ भी चारों दिशाओं से दर्शनीय चार रूपों में गढ़कर निर्माण किया है, उसमें उस महान् शिव-शक्ति को विशिष्ट पहिमा को प्रतीति इन दोनों बच्चों के मन में होने लगी। पूरब की ओर से देखने पर शिवजी के वाहन नन्दी का दर्शन होता है, उत्तर की तरफ से लिंग रूप में, पश्चिम दिशा से कुमार गणपति जैसा और दक्षिण से शिवजी के आभूषण नागराज जैसा दिखनेवाला वह पर्वत शिवजी का एक अपूर्व सन्देश-सा लगा उन दोनों को। वे प्रातःकाल उठकर नहाधोकर पहाड़ पर चढ़े । माँ-बेटी ने अन्तरगंगा की पूजा की। फिर भगवान के दर्शन किये। पहाड़ की सीधी चढ़ाई और शरीर की स्थूलता के कारण हेग्गड़ती माचिकष्चे ने उस चट्टान पर के नन्दी तक पहुँचने में अपनी असमर्थता प्रकट की।
"इन्द्रगिरि पर एकदम चढ़ गयी थों न अम्मा?" शान्तला से सवाल किया। "वहाँ चढ़ने की शक्ति बाहुबलि ने दी थी।' माचिकब्बे ने कहा।
"वहाँ अप्पाजी को शिवजी ने जैसी शक्ति टी, वैसी यहाँ बाहुबलि तुम्हें शक्ति देंगे, चलिए।" शान्तला ने अपना निर्णय ही सुना दिया।
"उसको क्यों जबरदस्ती ले जाना चाहती हो, उसे रहने दो, अम्माजी ! वह जब महसूस करती है कि चढ़ नहीं सकती तो उसे ऐसा काम नहीं करना चाहिए। अपने पर भरोसा न हो तो किसी को उस कार्य में नहीं लगना चाहिए। चलो, हम चलें। कविजी आप आएँगे न?" मारसिंगय्या ने पूछा।
"क्यों, चढ़ नहीं सकूँगा, ऐसी शंका है ?" बोकिमय्या ने सवाल किया। "ऐसी बात नहीं, सीधी चढ़ाई है। जो आदी नहीं उन्हें डर लगता है। इसलिए
पूछा।"
"डर क्यों?"
88 :. पट्टमहादेवी शान्तला