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के प्रतिदिन की इस नित्यसत्य प्रभा के कारण यह निष्ठावान् प्रभावाहक भगवान् सूर्य हैं। आवरण रहित इस विराट् रूप के लिए कभी अन्धकार ने आवृत नहीं किया है। चाहे कहीं से तुम स्वामी का दर्शन कर लो वही भव्यता उभरकर दिखाई देगी। ध्रुवतारे को देखते हुए खड़े स्वयं ध्रुवतारे की तरह प्रकाशमान इन स्वामी का यह रूप अब जिधर खड़ा है, उसी प्रस्तर में से उदित यही रूप, चामुण्डराय को दिखाई पड़ा था । " बोकिमय्या का ध्यान यों ही सहज भाव से भूतकाल की ओर सरक गया।
गढ़ा गया है ?" बिट्टिदेव ने पूछा । रखी है ऐसा आप समझते
"तब क्या इस मूर्ति को उसी स्थान पर "हाँ तो नीचे गढ़कर मूर्ति को ऊपर से हैं ?" बोकिमय्या ने कहा ।
" मान भी लें कि नीचे गढ़ी ही तो, उसे बिना विकृत किये ऊपर ले जाना सम्भव हो सकता था ?" शान्तला ने गुरु की बात का समर्थन करते हुए कहा ।
"सम्भवतः चामुण्डराय को अपने नाम से निर्मित करवाये उस मन्दिर के उसी स्थान से इन्द्रगिरि की उस चट्टान पर बाहुबलि की मूर्ति का दर्शन हुआ होगा। इसीलिए यह मूर्ति और यह मन्दिर जहाँ निर्मित हैं वह स्थान बहुत ही पवित्र है। अपनी माता की इच्छा को पूरा करने के इरादे से पोदनपुर की यात्रा पर निकले चामुण्डराय को मध्यवर्ग में ही यहीं, इसी स्थान पर भगवान् ने दर्शन दिये, इसी से यहीं मूर्ति की स्थापना हुई। वहाँ शंकर विद्याशंकर हुए, यहाँ चामुण्डराय गोम्मटराय बने ।" बोकिमय्या ने कहा ।
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'चाहे सम्प्रदाय कोई भी हो भक्ति का फल इसी तरह से मिलता है। क्या ये दोनों स्थान इस बात की गवाही नहीं दे रहे हैं ?" शान्तला ने कहा ।
"हाँ अम्माजी, इस सबके लिए मूल कारण निश्चल विश्वास है। इस निश्चल विश्वास की नींव पर ही भक्त की सब कल्पनाएँ ईश्वर की कृपा से साकार हो उठती हैं । "
"मतलब यह कि सभी धर्म एक ही आदर्श की ओर संकेत करते हैं - है न ? " "सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है। परन्तु मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। "
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'यदि ऐसा है तो 'मेरा धर्म श्रेष्ठ है - मेरा ही धर्म श्रेष्ठ है' कहकर वाद-विवाद क्यों करना चाहिए ? इस वाद-विवाद के फलस्वरूप एक मानसिक अशान्ति क्यों मोल ली जाय ? धर्म का आदर्श मन को शान्ति और तृप्ति देना है। उसे अशान्ति और अतृप्ति का कारण नहीं बनना चाहिए। है न?" शान्तला ने पूछा ।
"सच है अम्माजी ! परन्तु मानव का मन बहुत कमजोर है। इसलिए वह बहुत जल्दी चंचल हो जाता है। वह बहुत जल्दी स्वार्थ के वशीभूत हो जाता है। साथ ही 'मैं मेरा' के सीमित दायरे में वह बंध जाता है। उस हालत में उस मन को कुछ और दिखाई ही नहीं देता और कुछ सुनाई भी नहीं पड़ता। उसके लिए दुनिया वही और
7: पट्टमहादेवी शान्तला