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को उनके मुकाम पर छोड़ आने के लिए साथ गया था। युवरानी ने कहा।
दासी बोम्मले परदा हराकर बाहर गयी और तुरन्त लौट आयी। "क्या है बोम्मले?" "रेविमय्या लौट आया है; उसके साथ बलिपुर के कविजी भी आये हैं।" "अच्छा हुआ। दोनों को अन्दर बुला लाओ।" गेम्मले चली गयी। "बेटा! तुम्हारी इच्छा अपने आप पूरी हो गयी।" युवरानी ने कहा।
वह कुछ कहनेवाला था कि इतने में रेविमय्या और उसके पीछे कवि बोकिमय्या दोनों ने प्रवेश किया।
बोकिमय्या ने झुककर हाथ जोड़ प्रणाम किया।
"बैठिए कविजी ! इस भीड़-भाड़ में पता नहीं आपको कितनी असुविधाएँ हुई होंगी?" युवरानी ने कहा।
"सब तरह की सुविधाएं रहीं, युवरानीजी; रेविमय्या के नेतृत्व में सारी व्यवस्था ठीक ही रही।" कहते हुए कवि बोकिमथ्या बैठ गये।
___ "आप आये, अच्छा हुआ। मैं खुद बुलवाना चाहती थी। हाँ, तो अब आपके पधारने का कारण जान सकती हूँ?" युवरानी ने पूछा।
"कोई ऐसी बात नहीं। कल प्रात:काल ही चलने का निश्चय हेग्गड़ेजी ने किया है। अम्माजी के कारण आप लोगों के दर्शन का सौभाग्य मिला। हमारी वापसी की खबर सुनकर आपसे आज्ञा लेने के लिए आया हूँ।"
"क्या सीधे बलिपुर ही जाएंगे?"
"नहीं, बलिपुर से निकलते समय ही यह निश्चय कर चुके थे कि बेलुगोल होते हुए बाहुबलि के दर्शन करके लौटेंगे। वहाँ जाकर फिर बलिपुर जाएंगे।"
"बहुत अच्छा विचार है। आप हमारी तरफ से हेग्गड़तीजी से एक बात कहेंगे?"
"आज्ञा कीजिए, क्या कहना है ?
युवरानी थोड़ी देर मौन रही, फिर कुछ सोचकर बोली, "नहीं, हम ही खुद उन्हें बुलवा लेंगे और कह लेंगे।"
"तो मुझे आज्ञा दीजिए।" "अच्छा ।"
बोकिमय्या उठ खड़े हुए और बोले, "क्षमा करें, भूल गया था। मुझे बुलवाने का विचार सन्निधान ने किया था न? कहिए, क्या आज्ञा है?"
"कुछ नहीं, यह हमारा छोटा कुमार बिट्टिदेव है; यह आपसे मिलना चाहता था। इसीलिए अवकाश हो तो कल पधारने के लिए कहला भेजने की बात सोच रही थी।
54 :: एट्टमहादेवी शान्तला