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अपने अस्तित्व को प्रदर्शित करेगी ही। कुछ क्लिष्ट विषयों को समझाते समय संक्षेप में जिक्र कर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति होती तो शान्तला रोक देती और उसे समझाने की जिद कर बैठती। प्रारम्भिक दशा में उसकी वय के अनुसार विषय समझाना बड़ा मुश्किल होता था, और वह कठिन कार्य था भी। परन्तु उन्होंने केवल उस छोटी ग्रहणशील मेधावी छात्रा को समझाने के लिए एक नया ही तरीका अपनाया था। वास्तव में उनक पकाने का नया तरीका दिः ६. नी बहुत अच्छा लगा। वह चाह रहा था कि उनके अध्यापक भी इसी मार्ग का अनुसरण करते तो क्या ही अच्छा होता! परन्तु वह अपनी इस इच्छा को खुलकर नहीं कह सकता था।
कवि बोकिमय्या ने आरम्भ में ही जान लिया था कि बिट्टिदेव की मेधाशक्ति उसकी उम्र के लिए अपरिमित है। परन्तु बोकिमय्या का यह निश्चित मत था कि अम्माजी को प्रतिभा असामान्य है। उन दो दिनों में उनके अन्दर एक नया आशांकुर प्रस्फुटित हुआ था। उनकी आशा थी कि यदि राजकुमार को पढ़ाने का सुयोग मिला होता तो कितना अच्छा था। परन्तु उन्होंने सोचा, वह कहाँ, राजमहल कहाँ! कुछ पूर्वपुण्यवश शान्तला के कारण यह प्रवेश मिला। इतना ही नहीं, उसकी अपेक्षा से भी अधिक गौरव भी उसे प्राप्त हुआ।
दूसरे दिन पढ़ाते वक्त एक घटना घटी। उसका कारण था, बेलुगोल यात्रा का विषय । बाहुबलि के सम्बन्ध में बताने के लिए आरम्भ करते तो बोकिमय्या का उत्साह चौगुना बढ़ जाता था। उनके बताये विषय सुनने में शान्तला की बड़ी श्रद्धा थी। बाहुबलि की गौरवगाथा का वर्णन बोकिमय्या से सुनने के बाद बिट्टिदेव ने कहा, "परन्तु एक बात..." यह कहते-कहते उसने अपने को रोक लिया। इस तरह बात रोकने का कारण था कि शान्तला उसी को टकटकी लगाकर देख रही थी।
बोकिमय्या ने पूछा, "क्यों राजकुमार, बात कहते-कहते रुक क्यों गये? क्या बात है?"
बिहिदेव ने प्रश्न किया, "बाहुबलि स्वामी की भव्यता, त्याग आदि सबकुछ प्रशंसनीय है। परन्तु वे बिलकुल नग्न क्यों खड़े हैं? क्या यह परम्परागत संस्कृति के प्रतिकूल नहीं है?"
"मानवातीत, देवतुल्य के लिए साधारण मनुष्यों की तरह के रीति-रिवाजों का बन्धन नहीं, वे अतिमानव हैं।" बोकिमय्या ने जवाब दिया।
__ "क्या वे अपने जैन बन्धुओं की ही धरोहर हैं?11 फिर दूसरा प्रश्न किया बिट्टिदेव ने।
"उसका धर्म के साथ कोई सम्बन्ध नहीं। निरहंभाव की चरमावधि की प्रतीक है यह नग्नता । सुन्दर वस्त्रों से हम अपने शरीर को आच्छादित क्यों करते हैं ? केवल पसन्द करने के लिए ही न?" बोकिमय्या ने सवाल किया।
पट्टमहादेवी शान्तला :: 57