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अलंकार के आधिक्य से असत्य-सा लगने लगता है, यह सम्भव है।"
"तो क्या अवतार केवल कल्पना-विलास मात्र है?" "यह क्लिष्ट प्रश्न है। इसका उत्तर देना इतना सरल नहीं।"
"सत्य को सत्य कहने में, असत्य को असत्य बताने में, कल्पना को कल्पना कहने में क्या दिक्कत होती है?"
"सत्य-असत्य-कल्पना-इन तीनों शब्दों के एक निश्चित अर्थ हैं। परन्तु जो दुष्टिगोचर नहीं और जिस पर हमारा अडिग विश्वास है-ऐसे विषयों को इस मानदण्ड से मापना और तदनुसार निर्णय करना कठिन है।"
"हम इस विषय को लेकर दुनिया में वाद-विवाद कराने, शास्त्रार्थ करवाने लगे तो चलनेवाला नहीं। विषय-ज्ञान से अनभिज्ञ हम जैसे छोटों को इन विषयों के बारे में आप जैसे अभिज्ञों के दृष्टिकोण समझने की जिज्ञासा होती है। इतना समझाइए। इससे हमारी तर्कबुद्धि और जिज्ञासा का समाधान न हो सके तो भी हर्ज नहीं।"
__ "राजकुमार का कहना ठीक है। एक धर्मावलम्बी का दूसरे धर्मावलम्बी को समझने का दृष्टिकोण क्या हो सकता है, इस बात की जानकारी अलबत्ता हो सकती है। मगर जिज्ञासा का समाधान नहीं हो सकता। क्योंकि वह विषय ही चर्चास्पद है।"
__ "यहाँ उपस्थित हम सब एक ही विश्वास के अनुगामी हैं। इसलिए आप निस्संकोच अपना विचार बतला सकते हैं।" ।
"राजकुमार गलत न समझें। यह सही है कि हम तीनों का विश्वास एक है। फिर भी हर विश्वास उतना ही दृढ़ नहीं होता है। तीनों में विश्वास का परिमाण भिन्न. भिन्न स्तरों का है। इसके अलावा बड़े-बड़े मेधावी विद्वानों के बीच तर्क और शास्त्रार्थ इस कठिन विषय पर चल ही रहा है, चलता ही रहेगा। ऐसे क्लिष्ट विचार को मस्तिष्क में भर लेने योग्य आयु आपकी नहीं। अतः मेरी राय में ऐसे क्लिष्ट विषयों को अभी से दिमाग में भर लेना उतना समीचीन नहीं होगा। क्योंकि अभी विश्वास के बीज अंकुरित होने का यह समय है। उस बीज से अंकुर प्रस्फुटित हुआ है या नहीं, इसकी जाँच करने हेतु उगते बीज को निकालकर देखना नहीं चाहिए! बीच अंकुरित होकर पौधा जब अच्छी तरह जड़ जमा ले तब उसकी शाखा-प्रशाखाओं को हिला-डुलाकर जड़ कितनी गहराई तक जाकर जम गयी है, इस बात की परीक्षा की जाय तो ठीक होगा। विश्वास का बीज उत्तम और अच्छा रहा तो जड़ें गहराई तक पहुँच सकती हैं। वीज साधारण स्तर का होगा तो हिलाने-डुलाने से ही जड़ें उखड़ जाएँगी। जो भी हो, विश्वास की जड़ जमने तक प्रतीक्षा करना ही उत्तम है।"
बिट्टिदेव और बोकिमय्या के बीच हो रही इस चर्चा को तन्मय होकर शान्तला सुनती रही। यह चर्चा आगे बढ़े यही वह चाह रही थी। बोकिमय्या ने इस चर्चा को अपने उत्तर से समाप्त कर दिया था। इससे वह निराश हुई। वह प्रतीक्षा करती रही कि
पट्टमहादेवी शान्तला :: 39