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"मैंने बताया, "उस मूर्ति का शरीर, हाथ और पैर तो फौलाद जैसे मजबूत लगते हैं। मगर देखने में बड़ो सुन्दर है। तब राजकुमार ने कहा, 'मर्द को तो ऐसा हो होना चाहिए।' उन्होंने कहा कि उस मूर्ति को एक बार देखना चाहिए।"
"तुमने बुलाया?" "मैं बुलाऊँ तो राजकुमारजी आएँगे?" "बलाना हमारा धर्म है। आना, न आना उनकी इच्छा।" "भूल हुई माँ । तब तो उन्हें निमन्त्रित करूंगी।"
"अब बुलाने न जाना। जब बुलाने का मौका था तब नहीं बुलाया; अब बुलाना संगत न होगा। राजकुमार की इच्छा को पूरा करने के लिए दूसरा कुछ और उपाय सोचेंगे।"
इतने में रेविमय्या हाँफता हुआ आया और कहने लगा, "बड़ा गड़बड़ हो गया हेग्गड़तीजी! राजमहल के अन्तःपुर के पास उससे लगे उस दीवानखाने में जिसमें महारानी जी रहा करती हैं, वहीं ठहराने की युवराज की आज्ञा थी। आप लोगों को यहाँ कौन लिया लाया ? उठिए, उठिए, युवरानीजी बहुत गुस्सा कर रही हैं।"
"हमें क्या मालूम, रेविमय्या। हम सहज रीति से युवरानीजी का ही अनुसरण कर रहे थे। चामव्वा नेहम यहाँ भेज दिया। यहां भी अच्छा है। यहाँ रहने में क्या हर्ज है?" हेग्गड़ती माचिकब्जे ने कहा।
"जो भी, हो, अब तो मुझे यह सब करना है। आप कृपा कर मेरे साथ चलें, नहीं तो मैं जीवित नहीं रहूँगा। मेरा चमड़ा उधेड़कर उसका झण्डा फहरा दिया जाएगा।"
तुम्हारी इसमें क्या गलती है, रेविमय्या? जब यह सब हुआ तब तुम वहाँ थे ही नहीं।"
__ "वह मेरी गलती है। वहाँ रहकर आप लोगों को उनके साथ राजमहल में ले जाना चाहिए था। उन्होंने खुद सोसेऊरु में ही ऐसी आज्ञा दी थी। पहले वहाँ आगे रहकर मुझे अपना कर्तव्य करना था। नहीं किया। इसीसे यह सारी गड़बड़ पैदा हो गयी है। एक शुभकार्य समाप्त कर आये, अब इस व्यवहार से मुझे मन मारकर रहना पड़ा है। मुझे इस संकट से बचाइए। आपके पैरों पड़ता हूँ।" कहते हुए रेविमय्या उनके पैरों पर गिर पड़ा।
"उठो रेविमव्या, यह सब क्या? चलो, हम जहाँ भी रहें, एक जैसा है। हम किसी को दु:खी करना पसन्द नहीं करते।" हेगड़े मारसिंगय्या ने कहा। और सबने रेविमय्या का अनुसरण किया।
(if .: पट्टमहादेवी शान्सला