Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
॥३५॥
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सोलह स्वप्न देखे १ पहले स्वप्ने में ऐसा चन्द्र समानउज्ज्वल मद भरता गाजता हाथी देखा जिसपर भ्रमर गुंजारकरे हैं २ दूजे स्वप्ने में शरद के मेघसमान उज्ज्वल घवल दहाड़ ता हुआ बैल दखा जिसके बड़बड़े कन्धे हैं ३ तीसरे स्वप्ने में चन्द्रमा की किरण समान सुफेद केशों वाला विराजमान सिंह देखा ४ चौथे स्वप्ने में देखा कि लक्ष्मी को हाथी सुवर्ण के कलशों से स्नान करारहे हैं, वह लक्ष्मी प्रफुल्लित कमल पर निश्चल तिष्ठे है ५ पांच वे स्वप्ने में ऐसी दो पुष्पों की माला आकाश में लटकती हुई देखी जिनपर भ्रमर गुञ्जार कर रहे हैं ६ छठे स्वप्ने में उदयाचलपर्वत के शिखर पर तिमिर के हरण हारे मेघ पटल रहित सूर्य्य देखा ७ सांतवे स्वपने में कुमदनी को प्रफुल्लित करण होरा रात्री का आभूषण जिसने किरणों से दशदिशा उज्ज्वल करी हैं सा तारों का पति चन्द्रमा देखा = आठवें स्वप्ने में निर्मल जल में कलोल करते अत्यन्त प्रेम के भरे हुवे महा मनोहर मीन युगल (दो मछ) देखे ६ नवमें स्वप्ने में जिन के गले में मोतियों के हार और पुष्पों की माला शोभायमान हैं ऐसे पञ्च प्रकार के रत्नों कर पूर्ण स्वर्ण के कलश देखे और १० दशवें स्वप्ने में नाना प्रकार के पक्षियों से संयुक्त कमलों कर मण्डित सुन्दर सिवा (पौड़ी ) कर शोभित निर्मल जल कर भरा महा सरोवर देखा ११ ग्यारहवें स्वप्ने में आकाश के तुल्य निर्मल समुद्र देखा जिस में अनेक प्रकार के जलचर केलकरें हैं और उतंग लहरें उठें हैं १२ बारहवें स्वप्ने में अत्यन्त ऊंचा नाना प्रकार के रत्नों कर जड़ित स्वर्ण का सिंहासन देखा १३ तेरहब स्वप्ने में देवताओं के विमान आवते देखे जो सुमेरु के शिखर समान और रत्नों कर मण्डित चामरादिक से शोभित हैं १४ र चौधहवें स्वप्ने में घरणींद्र का भवन देखा जिस में अनेक खण ( मंजिल ) हैं
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