Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
नहीं तथापि पतिकी आज्ञा प्रमाण कर कर्ण फूलादिक आभूषण पहिरे हैं जिन के मुख का हास्य ही सुगन्धित ३४. चूर्ण है उन समान कपूरकीरज कहां और जिन की बाणी बीए के स्वरको जीते है उनके शरीरके रंग के आगे स्वर्ण कुंकुमादिक का रंग क्या चीज़ है, जिन के चरणारविन्द पर भ्रमर गुआर करे हैं, नाभि राजा सहित मरुदेवी राणी यश का वर्णन सैकड़ों ग्रन्थों में भी न होसकै तो थोड़े से श्लोकों में कैसे होय ॥
जब मरु देवी के गम में भगवान् के श्रागमन के छह महीना बाकीरहे तब इन्द्र की आज्ञा से छप्पन .. कुमारिका हर्ष की भरी माता की सेवा करती भई और १ श्री २ ही ३ धृति ४ कीर्ति ५ बुधि ६ लक्ष्मी । यह षट् (६) कुमारिका स्तुति करती भई हे मात ! तुम अानन्दरूप हो हम को आज्ञा करो तुमारी श्रायु दीर्घ होवे इस भान्ति मनोहर शब्द कहती भई और नाना प्रकार की सेवा करती भई, कई एक बीणबजाय महा सुन्दर गान कर माता को रिझावती भई और कई एक ग्रासन विद्यावती भई और कई एक कोमल हाथों से माता के पांव पलोटती भई कई एक देवी माता को तांबूल (पान) देती भई कै एक षड्ग हाथ में धारण कर माता की चौंकी देती भई कैएक बाहरले द्वार में कैएक भीतर के द्वार में सुवर्ण के से लिये खड़ी होती भई और कै एक चवर ढोरती भई कई एक आभूषण पहरावती भई कई एक सेज विद्यावती भई के एक स्नान करावती भई कई एक चांगन वहारती भई के एक फूलों के हार गथती भई कई एक गन्ध लगावती भई कई एक खाने पीने की विधि में सावधान होती भई कई एक जिस को बुलावे उस को बुलावत भई इस भान्ति सर्व कार्य्य देवी करतीं भई, माता को किसी प्रकार की भी चिन्ता न रही ॥
एक दिन माता कोमल सेज पर शयन करती थी, उसने रात्री के पिछले पहर अत्यन्त कल्याणकारी
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