Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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तैसे ही भोग तृष्णा से जो कुदान करें हैं वह भोग भूमि में पशु जन्म पावें हैं ॥ ( भावार्थ )-दान चार प्रकार का है एक आहार दान दूजा औषधदान तीजा शास्त्रदान चौथाअभयदान, तिस में मुनि आर्यिका उत्कृष्ट श्रावकों को भक्ति कर देना पात्र दान है और गुणों कर पाप समान साधर्मीजनों को देना समदान है और दुखित जीव को दया भावकर देना करुणादान है और सर्व त्याग कर के मुनिव्रत लेना सकल दान है यह दान के भेद हैं। ____जब तीजे काल में पल्य का आठवां भाग बाकी रहा तब कुलकर उपजे प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति भये तिनके वचन सुनकर लोक अानन्द को प्राप्त भये वह कुलकर अपने तीन जन्म को जाने हैं और उनका चेष्टा सुन्दर है और बह कर्म भूमि के व्यवहारके उपदेशक हैं तिनके पीछे दूजा कुलकर सम्मति भया तिनके पीछे तीसरा कुलकर क्षेमकर चौथा क्षेमंधर पांचवां सीमंकर छठा सीमंधर सातवां विमल वाहन आठवां चक्षुष्मान नवां यशस्वी दशवां अभिचंद्र ग्यारवां चन्द्राभ बारहवां मरुदेव तेरहवां प्रसेनजित चौदवांनाभि राजा यह चौदह कुलकर प्रजा के पिता समान महा बुद्धिमान शुभ कर्मसे उत्पन्न भये नव ज्योतिरांग जाति के कल्पवृक्षों की ज्योति मन्द भई और चांदसूर्य नजर आए तिनको देख कर लोग भयभीत भए कुलकरोंको पूछते भये हे नाथ ! यह अाकाश में क्या दीखे है तब कुलकर ने कहा कि अब भोगभूमि समाप्तहुई कर्म भूमिका आगमन है ज्योतिरांग जाति के कल्पवृक्षोंकी ज्योति मन्द भई है इसलिये चांद सूर्य नजर आएहैं देव चार प्रकार के हैं कल्पवासी भवनवासी व्यंतर और ज्योतिषी तिन में चांद सूर्य ज्योतिषयों के इन्द्र पतीन्द्र हैं चन्द्रमा तो शीत किरण है और सूर्य ऊष्य
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