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"किया सुनहरे शब्दों में पण्डित रूप चरितार्थ श्री कल्याणकुमार 'शशि', रामपुर
लब्धिसार, सर्वार्थसिद्धि, जयधवला ज्ञान ग्रहीत, पंचाध्यायी, जैनतत्त्वमीमांसा आदि पुनीत । मुखरित है पूर्वाचार्यों का, आध्यात्मिक संगीत, इससे लाभान्वित होंगे, शोधार्थी गणनातीत । पंडित फूलचन्द्र निधि, सैद्धान्तिक भण्डार, मुमुक्षुओंको लक्ष्य प्राप्ति के खुले मिलेंगे द्वार ॥
इन ग्रन्थोंमें कल्लोलित है, आत्मिक सिन्धु अगाध, शुद्ध ज्ञान पर्याय विवर्द्धत, शाश्वत अव्याबाध | साहित्यिक सामाजिक रूचियाँ, जुड़ती चली अबाध; विविध रूपमें संग चल रही, चिरस्थायिनी साध ।
शिलान्यासकी प्रथम ईंट ही निकली पानीदार; उच्च गगनचुम्बी शिखरों की, यही ईंट आधार ॥
विश्व शान्ति राष्ट्रीय भावना, निर्विवाद परमार्थ, विस्मय युक्त विषमताओं में, सम्मुख रहा यथार्थ । रहे महत्वकांक्षाओं में, निर्मोही निःस्वार्थ, किया सुनहरे शब्दोंमें, पाण्डित्य रूप चरितार्थ ।
शंका समाधानके योद्धा, आडम्बर में उदासीन,
तर्काश्रित तकरार; जैनागम की मीनार ॥
कर्मठता की सक्रियता में, कहीं न रञ्च विराम, श्रमकी साधक तत्परताओं में गौण रहा विश्राम । लड़ा दासता के विरोध में स्वतन्त्रता संग्राम, इस अभिनन्दनीय जीवन को शत्शत् बार प्रणाम ।
स्याद्वाद के अनेकान्त के दिये सटीक विचार, किन्तु रञ्च भी अहङ्कार को किया नहीं स्वीकार ।।
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