________________
मेरी डायरीके पृष्ठों में सिद्धान्तशास्त्रीजी • राजवैद्य पण्डित भैया शास्त्री आयुर्वेदाचार्य, शिवपुरी
पूर्वकी बात है जब मैं
लगभग अर्द्ध शताब्दि अध्ययन करता था तब पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीका नाम सुना करता था उनके दर्शनोंकी उत्कण्ठा मनमें होती थी ।
सन् १९४८ में एकबार मैंने अपनी सन्देश डायरी सर्वप्रथम पूज्य वर्णीजीसे सन्देश लिखाया फिर पं० फूलचन्द्रजीसे पश्चात् न्यायाचार्य पं० महेन्द्र कुमारजीसे इन तीनों मनीषि गुरुओंके सन्देश लेकर घर चला गया, सन्देश क्या थे मेरे जीवनको नई दिशा देने वाले थे । सिद्धान्तशास्त्रीजीने अपनी कलमसे मेरी डायरी पर लिखा ।
प्रथम खण्ड : ४१
"जीवनकी साधना सेवा, त्याग और आत्म शुद्धि है । जिसने इस त्रयीको अपनाया उसीका जीवन सफल है ।'
31
मैंने पण्डितजीके जीवनसे यही सबक सीखा है कि सेवा और त्यागवृत्तिसे आत्मशुद्धि होकर मानवमानव अपने उत्कर्षकी ओर अग्रेसित हो अन्तिम मंजिल पर पहुँच जाता है । अब यह सेवा चाहे तो मानवकी हो या उसके जीवन चर्या से सम्बन्धित कार्य कलापोंको परिमार्जित कर आगे उत्कर्षकी ओर ले जानेवाली ये सामाजिक धार्मिक सैद्धान्तिक और आत्मिक बोधका महत्त्व प्रायः सभी जानते हैं और मानते भी हैं ।
पूज्य पंडितजीने समाजके क्षेत्रमें धर्मके बीच और आत्मिक विकासके क्षेत्रमें बहुत बड़ी सेवा की है । अभिनन्दनके इस अवसर पर मेरी शुभकामनाएँ हैं कि पूज्य शास्त्रीजी निरोग और चिरायु हों ।
समाज सेवामें अग्रणी
• श्री पूरनचन्द्र जैन, वाराणसी
सिद्धान्त शिरोमणि पूज्य पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्ताचार्य जैन समाजके जाने माने वयोवृद्ध विद्वान् हैं । समाजोत्थानकी सभी प्रवृत्तियोंमें वे सदैव आगे रहे हैं तथा उसके लिए विविध कष्टोंको उठाया है ।
कितनी ही सामाजिक तथा साहित्यिक संस्थाओंके जन्म में पंडितजीका हाथ है । इनमें श्री गणेश वर्णी दि० जैन संस्थान प्रत्यक्ष उदाहरण है। जिसके लिए पण्डितजीने अपना सब कुछ लगा दिया तथा आज भी इसके लिए वे दिनरात चिन्तित रहते हैं । वर्तमानमें संस्थानका जो मूर्तरूप संस्थान भवन पुस्तकालय, प्रकाशन तथा धौव्य फंड आदि है वह सब पूज्य पण्डितजीके सफल प्रयासका ही प्रतिफल है ।
मुझे दो-तीन बार पंडितजीके साथ सहायकके रूपमें यात्रा करने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ है उस समय पण्डितजीको समीपसे देखा है । उनकी आत्मीयता, सहजता तथा वात्सल्य भावको भुला पाना कठिन है ।
हमारा सौभाग्य है कि ऐसी निःस्पृह विभूति हमारे बीच मौजूद है । हम पण्डितजीके दीर्घायु एवं अरोग्यकी मंगल कामना करते हैं । उनके चरणोंमें विनम्र शतशः प्रणाम !
६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org